क्षेत्रीय फिल्म सैराट छोड़ रही समाज के पटल पर गंभीर प्रश्न
क्षेत्रीय फिल्म सैराट छोड़ रही समाज के पटल पर गंभीर प्रश्न
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भारतीय सिनेमा के दर्शकों का एक बड़ा वर्ग हिंदी सिनेमा के दर्शकों का है. यही वर्ग क्षेत्रीय सिनेमा में कुछ बंट जाता है. हिंदी सिनेमा को दर्शकों का एक बड़ा वर्ग मिल जाता है. मगर इसके बाद भी क्षेत्रीय सिनेमा की अपनी अलग ही धाक है. हिंदी सिनेमा में पीके के बाद भी कई फिल्में आईं जिनमें कुछ हिट रहीं. इन फिल्मों को युवा वर्ग ने खासा पंसद किया. मगर इन दिनों चर्चा हो रही है. मराठी भाषा की फिल्म सैराट की. जी हां, नागराज मंजुले निर्देशित यह फिल्म इन दिनों सिनेप्लेक्स और थियेटर्स में दर्शकों का अच्छा प्रतिसाद पा रही है. हालांकि क्षेत्रीय भाषा की इस फिल्म का अपना दर्शक वर्ग है।

मगर इस फिल्म को बहुत सराहा जा रहा है. वस्तुतः यह फिल्म एक टीनएज लवस्टोरी के माध्यम से समाज के सामने एक बड़ा प्रश्न खड़ा करती है. दरअसल फिल्म के दृश्य उस व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं जो दलित बनाम दबंग के लगभग आसपास ही है. एक ऐसा वर्ग जो कि गांव के पाटिलों को अभिजात्य मानता है और इस वर्ग की गांव में अपनी दबंगई है. राजनीति में इसकी अच्छी पैठ है. यह वर्ग धनी है श्रेष्ठी है।

तो दूसरी ओर ऐसा वर्ग है जो कभी खाली पेट पानी पीकर अपना दिन निकालता है तो कभी समंदर के रहमो करम पर जीता है. आखिर डिजीटल युग में भी भारतीय समाज में जाति प्रथा इतनी गहराई तक क्यों जमी हुई है. क्यों धनिक और निर्धन का भेद आज भी है. इस फिल्म के माध्यम से समाज की कई व्यवस्थाओं को झकझोर दिया गया है. जाति प्रथा के ही साथ गांवों में चलने वाले विद्यालयों का स्तर बताया गया है।

यह दर्शाया गया है कि आज भी गांवों में अच्छे प्राथमिक विद्यालयों का अभाव है. गुरू- शिष्य के बीच अब सम्मान कम हो रहा है. यही नहीं समाज के आदर्शों में भी गिरावट आ रही है. इस तरह से समाज की कई व्यवस्थाओं पर यह फिल्म आघात कर रही है. निर्देशक नागराज मंजुले अपने दूसरे प्रयास में काफी हद तक सफल हुए हैं. फिल्म का दृश्यांकन जिस तरह से किया गया है वह भी उम्दा नज़र आता है. इस फिल्म में उस युवा वर्ग को दर्शाया गया है जिसक पास अवसरों की कमी नहीं है।

वह चाहे तो मेहनत और लगन से किसी अच्छे मुकाम को हासिल कर सकता है. युवा वर्ग के सामने कई तरह की बातें भी इस फिल्म में अंत के मार्मिक दृश्य से प्रस्तुत किए गए हैं. साथ ही पारंपरिक समाज और परिवारों द्वारा बदले की भावना के दुष्परिणामों के समाज पर होते असर को भी दर्शाया गया है. यह फिल्म समाज के सामने कई तरह के यक्ष प्रश्न छोड़ रही है।

'लव गडकरी'

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