आरक्षण को लेकर उग्र आंदोलन कितना उचित
आरक्षण को लेकर उग्र आंदोलन कितना उचित
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भारत एक बहुजातिय देश है। यहां पर कई जातियों का निवास है। इनमें कुछ जातियां अगड़ी हैं तो कुछ पिछड़ी हैं। इन जातियों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई तरह की सुविधाऐं दी जाती हैं। इन सुविधाओं में आरक्षण भी एक ऐसी ही व्यवस्था है। जातिगत आरक्षण ने समाज के उन तबकों को सामान्य वर्ग के साथ लाकर खड़ा कर दिया है। इस वर्ग के लोग अब शिक्षित हो रहे हैं और नौकरियों में अपनी समान भागीदारी पा रहे हैं मगर अब कई ऐसी जातियां सामने आ रही हैं जो कि अपने लिए आरक्षण की मांग कर रही हैं।

ये अपने लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में प्रवेश का आसान रास्ता तलाश रहे हैं। हालांकि स्वाधीनता के बाद ऐसे वर्गों का आरक्षण का लाभ दिया जा चुका है जो कि अपेक्षाकृत रूप से पिछड़े थे और जिन्हे समाज में समान अवसर दिए जाना आवश्यक था। मगर अब तो ऐसे वर्ग सामने आ रहे हैं जो कि धनिक हैं, जिनका कृषि, व्यवसाय, शिक्षा, रोजगार में बेहतर विकास है।

ये इन सभी क्षेत्रों में अच्छी स्थिति में हैं। इसके बाद भी ये अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं। जबकि इनकी आर्थिक स्थिति बेहतर है। ऐसे वर्ग आरक्षण की मांग करने के ही साथ अपने आंदोलन को उग्र करने लग जाते हैं। इनके उग्र प्रदर्शनों से राज्य की व्यवस्था चरमरा जाती है और तो और राज्य में अराजकता फैलती है। बेवजह तोड़फोड़ करना आदि उग्र प्रदर्शन का हिस्सा बनाकर ये स्वयं ही अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर देते हैं। जबकि इन्हें अपनी बात को वाजिब तरह से व्यवस्था तंत्र के बीच ले जाना चाहिए। मगर अपनी बात को उग्र प्रदर्शनों के माध्यम से सामने लाने से व्यवस्थातंत्र में अराजकता का माहौल निर्मित हो जाता है।  

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