आखिर कब पटेगी दलित - दबंग की खाई !
आखिर कब पटेगी दलित - दबंग की खाई !
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आखिरकार एक बार फिर दबंग राजनीति की भेंट चढ़ गए। आखिर कौन ऐसा है जो अपने कांधे पर अपनी संतानों की अर्थी देख सकता है। हरियाणा में तो दलित जितेंद्र ने अपने दो - दो बच्चों को अपनी ही आंखों के सामने जिंदा जलते हुए देखा। क्या किसी पिता के लिए इससे बड़ी त्रासदी और कोई हो सकती है। इस मसले पर भी भारत में राजनीति चलती रही। पक्ष - विपक्ष अपनी - अपनी बातें करते रहे। मगर इस मसले पर वे नहीं आए जो आरक्षण का झंडाबरदार करते रहते हैं।

उन्हें चुनावी मंच से लोगों को पटकने की धमकियां देने से फुर्सत मिले तो वे इस बात पर ध्यान देंगे। संविधान निर्माताओं द्वारा जातिवाद और ऊंच - नीच की जो खाई को पाटने का प्रयास किया जा रहा था वह तो अब तक पटी नहीं हां उसे नेताओं के भाषणों, विवादों ने और बढ़ा दिया। स्वाधीनता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी आखिर एक दलित को उसके घर में जिंदा जला दिया जाता है। इससे बड़ा अभिशाप देश के लिए और क्या होगा।

आज भी खाप पंचायतों के रूढ़ीवादी फरमान लोगों पर हावी हैं। हालात ये हैं कि दबंग के घर के सामने से दलित की बारात निकल जाए तो गोलियां चल जाती हैं। आज भी देश में जातिवादी की खाई इतनी गहरी है जिसका अंदाज़ा लगाना बेहद मुश्किल है। यह खाई हमारे जनतंत्र और समाज को खोखला कर रही है। नेताओं द्वारा आरक्षण का वार इस खाई को और गहरा करता जा रहा है। 

सही मायने में संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष भारत रत्न डाॅ. भीम राव आंबेडकर द्वारा दिए गए आरक्षण प्रावधान को राजनीतिक हथियार के तौर पर उपयोग कर लिया गया लेकिन समाज में दलित और दबंग के बीच की खाई कभी पाटी नहीं जा सकी। वक्त गुज़रते जाने के साथ यह और बढ़ती चली गई। राजनीति की रस्समकश में दलित और दबंग दोनों को ही उपयोग में लाया जा रहा है।

जहां महादलित नेता को वोट बैंक बटोरने के लिए उपयोग किया जाता है तो दूसरी ओर नेता तिलक, तराजू और तलवार के जोर पर राजगद्दी का विजय तिलक करने की तैयारी करते हैं। मगर ऐसे में पिसता तो आम आदमी ही है। आज भी दलित का शोषण किया जा रहा है और राजनीति के अखाड़े में उसे वोट बैंक के तौर पर उपयोग में लाया जा रहा है।

आरक्षण के प्रावधान का लाभ लेकर कुछ लोग क्रिमीलेयर में आ गए हैं तो वे ही अपने मंतव्य के लिए दलितों का उपयोग कर रहे हैं। यह वर्ग राजनीति और विभिन्न क्षेत्रों में उच्च पदों पर आसीन हो गया है। मगर उसे न तो किसी की फिक्र है और न ही किसी मसले से कोई सरोकार। शोर से राजनीति में अपना जोर चलाने में वह बड़ा मगन हो गया है। 

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