भूत और भविष्य की चिंता छोड़ यथार्थ में जीना सीखा
भूत और भविष्य की चिंता छोड़ यथार्थ में जीना सीखा
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आज हर व्यक्ति अपने जीवन में वर्तमान को छोड़ भविष्य की चिंता में लगा रहता हैं .जिस वजह से वह अपने वर्तमान को भी गवा देता हैं .व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते हैं .यह प्रकृति का नियम हैं ,कभी खुशी तो कभी गम ये तो आम बात होती हैं जो हर किसी के जीवन में आती हैं .प्रकति के अनुसार हर एक चीज के दो पहलू होते हैं .जैसे दिन हैं तो रात हैं ,जन्मा हैं तो मरेगा,सुख और दुःख तमाम बातें सामने आती ही हैं .हमें इन सबका का डरकर नहीं ,डटकर सामना करना हैं .

वर्तमान को भविष्य की चिंता में गंवाने का अर्थ है : आत्म-विनाश, चिंताग्रस्त होना, चिंता की मुट्ठी में कैद होना आत्म-विनाश का मार्ग है, इस विनाश से मुक्ति जरूरी है। बीते कल की मीठी-खट्टी यादों को पैरों तले रौंदकर और कभी न होने वाले भविष्य की चिंता के बोझ को कंधों पर से झटककर हल्के हो जाएं, चिंतामुक्त हो जाएं.जमकर जी लें वर्तमान को। क्षणजीवी बन जाएं.अपनी पूरी शक्ति, चेतना और क्षमता इस क्षण पर लगा दीजिए। चिंताएं काफूर हो जाएंगी.

महात्मा गांधी का इस संबंध में एक कथन है,एक सैनिक यह चिंता कब करता है कि उसके बाद उसके काम का क्या होगा? वह तो अपने वर्तमान कर्तव्य की ही चिंता करता है." चिंता के कारणों का विश्लेषण करने पर ज्ञात होगा कि चिंता का कारण मन में बैठा हुआ एक कल्पित भय है। वह तनिक भी वास्तविक नहीं है और यदि आप जैसा सोच रहे हैं वैसी संभावनाएं हैं तो भी उन संभावनाओं को तोड़-मरोड़कर और निश्चित घटना के रूप में क्यों देख रहे हैं.

यह सही है कि विमान दुर्घटनाग्रस्त होते रहे हैं, उनका अपहरण होता रहा है, परीक्षाओं में असफलताएं मिलती रहीं हैं, अच्छे और लाभप्रद व्यापार में नुकसान होते रहे हैं, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि प्रत्येक विमान इस स्थिति से नहीं गुजरता, हर विमान का अपहरण नहीं होता, परीक्षाओं में बैठने वाले सभी छात्र असफल नहीं होते, दुनिया भर में फैले लंबे-चौड़े व्यापार सभी नुकसान नहीं डोलते.

हम लोगों की कठिनाई यह है कि हम संभावनाओं को यथार्थ मान बैठते हैं। हमें अशुभ सोचने की आदत पड़ चुकी है या हम भगोड़े हैं. इसीलिए तो कल्पित को जीते हैं, जबकि हमें यथार्थ में जीना चाहिए. चिंता जब तक हमें सावधान करती है, हमारे भीतर कर्तव्य भावना जगाती है, तब तक वह हमारा स्वस्थ मनोभाव है, किंतु जब हम स्थिति से डरकर भागने पर उतारू हो जाते हैं, तब चिंता हमारी चिता बन जाती है. अतीत की स्मृतियां मत संजोइए। यदि अतीत का चिंतन मन पर बोझ बना रहा तो हम अपने वर्तमान को गंवा देंगे. आज और इस समय को यदि हम बीते कल पर खर्च कर देंगे तो आज की उपलब्धि से खुद को वंचित कर लेंगे.

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