आज है प्रदोष व्रत, जानिए  क्यों किया जाता है यह व्रत
आज है प्रदोष व्रत, जानिए क्यों किया जाता है यह व्रत
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प्रदोष व्रत महीने में दो बार यानी शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की बारस अथवा तेरस को आता है. ऐसे में प्रदोष का व्रत एवं उपवास भगवान सदाशिव को प्रसन्न करने के लिए करते हैं और प्रदोष काल में स्नान करके मौन रहना चाहिए, क्योंकि शिवकर्म सदैव मौन रहकर ही पूर्णता को प्राप्त करता है. इसी के साथ इसमें भगवान सदाशिव का पंचामृतों से संध्या के समय अभिषेक करते हैं. आपको बता दें कि प्रदोष का सबसे बड़ा महत्व है कि सोम (चंद्र) को, कृष्णपक्ष में प्रदोषकाल पर्व पर भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण किया गया था और यह सोम प्रदोष के नाम से जाना जाता है. ऐसे में उपासना करने वाले को एवं प्रदोष करने वाले को सोम प्रदोष से व्रत एवं उपवास प्रारंभ करना चाहिए और प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है.

आइए जानते हैं प्रदोष क्यों किया जाता है इसमें दोष क्यों और दोष है तो प्रदोष क्यों - पौराणिक कथानुसार चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ. चंद्र एवं रोहिणी बहुत खूबसूरत थीं एवं चंद्र का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख शेष कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से अपना दु:ख प्रकट किया. दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे. शनै:-शनै: चंद्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होना प्रारंभ हो गईं. नारदजी ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने को कहा, तत्पश्चात दोनों ने भगवान आशुतोष की आराधना की. चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे (चंद्र की अंतिम एकधारी) कि भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए. पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए.

'प्रदोष में दोष' यही था कि चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे थे. 'प्रदोष व्रत' इसलिए भी किया जाता है कि भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया अत: हमें उस शिव की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण किया था. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के बाद शिव महारात्रि का आगमन होता है. भगवान शिव पंचमुखी होकर 10 भुजाओं से युक्त हैं एवं पृथ्वी, आकाश और पाताल तीनों लोकों के एकमात्र स्वामी हैं. शिव का रूप ज्योतिर्मय भी है. एक रूप ज्योतिर्मय भी है. एक रूप भौतिकी शिव के नाम से जाना जाता है जिसकी हम सभी आराधना करते हैं. ज्योतिर्मय शिव पंचतत्वों से निर्मित हैं. भौतिकी शिव का वैदिक रीति से अभिषेक एवं स्रोतों (मंत्रोच्चारण) द्वारा स्तवन किया जाता है. ज्योतिर्मय शिव के निकट साधक मौन रहकर अपना कर्म करता है.

ज्योतिर्मय शिव तंत्र विज्ञान द्वारा दर्शन देते हैं, बशर्ते साधक को गुरु का पूर्ण मार्गदर्शन हो, क्योंकि तं‍त्र विज्ञान शिव का तेज है (तीसरा नेत्र). इस विज्ञान को जानने वाले जितने भी हुए और जिन्होंने भी शिव के इस रूप के दर्शन किए, सबने इस ज्ञान को गोपनीय रखा. यह सत्य है कि सत्यान्वेषी मनीषियों ने संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन कर अपनी व्याख्याओं में अपने-अपने अनुभवों को अपनी भाषाओं में वर्णित कर समाज के सामने जितना प्रकट करना आवश्यक था उसका प्रचार-प्रसार किया है. तंत्र विज्ञान वास्तविकता के दर्शन कराता है. इस शास्त्र को गोपनीय रखने के पीछे एक कारण यह भी है कि शिव के तत्वों का संपूर्ण रहस्य उजागर हो जाए तो इसका दुरुपयोग घातक सिद्ध हो सकता है. दर्शन शास्त्र में जब सीधे ईश्वर के दर्शन, उनकी कलाएं सामने आती हैं तो मनुष्य जीवन का वास्तविक अर्थ समझ में आने लगता है. परमहंस आवृत्ति जिसमें इंसान बालक स्वरूप हो जाता है, तब वांछित रूप में ईश्वर के दर्शन करता है. शिव परिवार पंच तत्व से निर्मित है. तत्वों के आधार पर शिव परिवार के वाहन सुनिश्चित हैं. शिव स्वयं पंचतत्व मिश्रित जल प्रधान हैं.

इनका वाहन नंदी आकाश तत्व की प्रधानता लिए हुए है. हां एक विशेष बात यह है कि शिवलिंग के सामने सदैव नंदी देव विराजते हैं और शिव के दर्शन करने के पूर्व नंदीदेव के सींगों के बीच (आड़) में से शिव के दर्शन करते हैं, क्योंकि शिव ज्योतिर्मय भी हैं और सीधे दर्शन करने पर उनका तेज सहन नहीं कर सकते. नंदी देव आकाश तत्व हैं. वे शिव के तेज को सहन करने की पूर्ण क्षमता रखते हैं. माता गौरी अग्नि तत्व की प्रधानता लिए हुए हैं. इनका वाहन सिंह (‍अग्नि तत्व) है. स्वामी कार्तिकेय वायु तत्व हैं.

इनका वाहन मयूर (वायु तत्व), श्री गणेश (पृथ्‍वी तत्व), मूषक इनका वाहन (पृथ्वी तत्व). भगवान श्री गणेश के बारे में एक विचारणीय बात यह है कि इतने बड़े गणपति, जिनका सिर गज का है, एक मूषक पर सवारी? तत्वों से अगर देखें तो मूषक पृथ्वी तत्व है. शिव परिवार इस समस्त चराचर के स्वामी हैं. इन्हीं की माया एवं कृपा से हम सभी संचालित हैं. शिवपुराण में उल्लेख मिलता है कि शिव के एक अंग से श्रीहरि विष्णु, एक अंग से ब्रह्माजी और शिव के मस्तकरूपी तीसरे ने‍त्र से महेश, इस प्रकार से इन सबको अपना-अपना दायित्व सौंपकर स्वयं भगवान भभूत रमाए ध्यान में रहते हैं. भगवान शिव रिद्धि-सिद्धि, सुख-समृद्धि के दाता हैं. ऐसे शिव को बारंबार प्रणाम.

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