राजनीति का सशक्त हथियार बनी पुलिस
राजनीति का सशक्त हथियार बनी पुलिस
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इन दिनों दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में हुई देशविरोधी नारेबाजी को लेकर विवाद गहरा गया है। समाचार चैनलों में भी यही मसला छाया हुआ है। इस बीच यह बात भी सामने आ रही है कि जिस कन्हैया कुमार को अब तक देशद्रोही नारेबाजी करने के लिए दोषी माना जा रहा था वह अब निर्दोष माना जा रहा है। दिल्ली पुलिस की कार्रवाईयों को लेकर सवाल किए जा रहे हैं। पूछा जा रहा है कि दिल्ली पुलिस ने कन्हैया को क्यों पकड़ लिया। इस मामले के मुख्य साजिशकर्ता उमर खालिद और उसके साथियों को क्यों नहीं पकड़ा जा सका है।

इस तरह के तमाम ऐसे सवाल हैं जो सरकार पर उठ रहे हैं। पुलिस भी इस मामले में घिरी नज़र आ रही है। एक बार फिर पुलिस की मजबूरी यहां पर सामने आती दिखाई दे रही है। दरअसल स्वतंत्र भारत में भी पुलिस उस कानून के तहत कार्य करने पर मजबूर है जो उसे नेताओं के हाथों की कठपुतली बना देता है। दरअसल भारत में पुलिस व्यवहार के लिए 1860 का पुलिस कानून आज भी अस्तित्व में है।

यह पुलिस कानून 1860 से 1880 तक ब्रिटिश राज द्वारा अपनाया गया। व्यापक रूप से यह वह कानून है जिसे ब्रिटिश राज सत्ता ने भारत की जनता और अंग्रेजी राज के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों के दमन के लिए बनाया था। इस कानून के तहत पुलिस का व्यवहार बर्बर था। पुलिस ब्रिटिश शासकों के अधीन कार्य करती थी। जिसका कार्य प्रदर्शनकारियों पर लाठियां भांजना, उनका दमन करना और उन्हें यातनाऐं देना था।

ठीक वैसे ही हालात युवा भारत के युवा नेताओं को लेकर देखने को मिल रहे हैं। हालांकि जेएनयू में लगाए जाने वाले देशद्रोही नारों की जितनी निंदा की जाए उतनी ही कम है लेकिन इस मामले में जो पूरी साजिश रचने के लिए दोषी थे उन्हें पकड़ने में पुलिस नाकाम रही है। वे नहीं पकड़ाए तो किसी और के ही गले में घंटी बांध दी जो कि अब तक बज रही है। कन्हैया कुमार घंटी के शोर से मुक्त होने के कई जतन कर रहे हैं, शायद अब उन्हें इससे छुटकारा मिल जाए।

दूसरी ओर गुजरात में भी बड़े पैमाने पर प्रारंभ हुआ पटेल आरक्षण आंदोलन ठंडा पड़ गया है। सत्ता की शक्ति ने इस आंदोलन को भी लगभग कुचल दिया। गुजरात में पटेलों के नायक बने और युवा राजनीति में तेजी से उभरकर सामने आ रहे हार्दिक पटेल को पुलिस के दमन का सामना करना पड़ा। उन्हें जेल जाना पड़ा और देशद्रोह के मुकदमे का सामना करना पड़ा।

जेल में भी पुलिस की कड़ाई का हार्दिक पटेल को सामना करना पड़ा। हालांकि हार्दिक पटेल अभी भी अपना आंदोलन जारी रखे हुए हैं लेकिन अब इस आंदोलन में वैसी जान नहीं रही जैसी हार्दिक के जेल से बाहर रहने के दौरान थी। हार्दिक पर लगाए गए आरोपों और पटेल आरक्षण आंदोलन को खदेड़ने के कारण फिर से राजनीतिक रूप से दबाव का सामना करने वाली पुलिस की विवशता सामने आ गई। भारत में इस तरह के गतिरोधों को दूर करने और एक तरह से हिटलरशाही नीतियों को समाप्त करने के लिए पुलिस कानून में बदलावों की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। हालांकि इससे इतर पुलिस विभाग राजनीति का सबसे सशक्त हथियार बनकर रह गया है। 

'लव गडकरी'

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