पुलिस तंत्र को चाहिए खुद से ही आज़ादी
पुलिस तंत्र को चाहिए खुद से ही आज़ादी
Share:

भारतीय पुलिस को लेकर अक्सर यह कहा जाता है कि वह अक्सर कई तरह के दबाव में रहती है, जहां भारतीय पुलिस राजनीति से अधिशासित होती है वहीं उस पर कार्य का अधिक दबाव होता है तो दूसरी ओर ड्युटी के घंटों का अधिक होने के कारण पुलिसकर्मी अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, ऐसे में पुलिसकर्मी और अधिक दबाव महसूस करते हैं, आधुनिक दौर में पुलिसकर्मियों का कार्य भी बढ़ गया है, अब पुलिसकर्मियों को आधुनिक तकनीक से परिचित होना जरूरी हो गया है, मगर वर्षों पूर्व विभाग में पदस्थ हुए पुलिस अधिकारी एक आयु बीत जाने के बाद आधुनिक तकनीक सीखने में इतने कुशल नहीं हो पाते हैं।

दूसरी ओर अपराधियों के पास बढ़ते संसाधन, आधुनिक तरीके और बढ़ती जनसंख्या के कारण पुलिस का कार्य काफी मुश्किल हो जाता है, जिस पर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी उन्हें घेरने लगती हैं, ऐसे में पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली में बदलाव को अनुभव किया जा रहा है, दरअसल वर्तमान में जो पुलिस कार्यरत है वह अंग्रेजों के बनाए 1861 के पुलिस कानून से रेग्युलेटेड है, अंग्रेजों ने जिस पुलिस तंत्र का निर्माण किया था वह स्वातंत्र्य के लिए आंदोलित जनता और क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए उपयोग में लाई जाती थी।

यह पुलिस प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बरसाती थीं, अंग्रेजों द्वारा इसका नियंत्रण किया जाता था लेकिन अब उसी कानून के तहत पुलिस तंत्र राजनीति की कठपुतली बन गई है, दरअसल पुलिसकर्मियों का प्रयोग सत्ताधारी दल अपने विरोधियों को दबाने के लिए करता है तो कई बार प्रदर्शनकारियों को बलपूर्वक खदेड़ा जाता है, कई बार पुलिस का कार्य धार्मिक आयोजनों में भीड़ को नियंत्रित करने का होता है, तो कई बार प्रभावशाली व्यक्ति अपना प्रभाव जमाने और राजनीतिक रसूख के चलते पुलिस के सुरक्षाकर्मियों को किसी निजी अंगरक्षक या निजी गार्ड के तौर पर उपयोग करते हैं हालांकि धार्मिक आयोजन में व्यवस्था के अनुसार पुलिसकर्मियों की ड्युटी लगाई जाना समझ में आता है लेकिन प्रभावशील व्यक्ति के निजी गार्ड की तरह पुलिसकर्मी का उपयोग किया जाना समझ से परे है।

ऐसा होता है और ऐसा होने के साथ इस देश में यह सब चलता है, इस तरह से पुलिस का मनोबल गिरता है, जो पुलिसकर्मी देश की सेवा करने का मन बनाकर पुलिस में भर्ती होता है वह भीतरी भ्रष्टाचार और रसूखदारों के प्रभाव के आगे व्यवस्था तंत्र के आगे मजबूर हो जाता है, ऐसे में पुलिसकर्मी भी तंत्र की व्यवस्था में स्वयं को रमा लेता है और अपनी ड्युटी को मजबूरी समझकर अपना कार्य करता है, मगर इससे पुलिस तंत्र कमजोर हो जाता है, हालांकि इन सभी के बीच पुलिस अधिकारी कई बार बेहतर कार्य भी करते हैं, मुंबई में हुआ 26/11 का आतंकी धमाका हो या फिर नक्सलवाद को लेकर विभिन्न राज्यों में गठित की गई एसटीएफ पुलिसकर्मी अपना कार्य बेहतर तरीके से करते देखे गए।

कई ऐसे मामले रहे जिसमें पुलिस अधिकारियों ने बेहतर कार्य किया। मुंबई का शीना बोरा हत्याकांड भी एक ऐसा मामला था जिसे सुलझाने के लिए पुलिस ने दिन रात एक कर दिए और मामले की गुत्थी को सुलझा दिया मगर कई बार पुलिस को दबाव भी झेलना पड़ा, दिल्ली में ही कितने ऐसे मसले हुए हैं जिसमें दिल्ली पुलिस को दबाव झेलना पड़ा, केंद्र और राज्य के टकराव की बातें भी कई बार सामने आईं, तो दिल्ली पुलिस के लिए राजनीतिक रूप से ठुल्ले शब्द का उपयोग हुआ और इस पर जमकर विवाद भी हुआ।

ऐसे में पुलिस की साख पर असर हुआ, यही नहीं पुलिस में ही महिला पुलिसकर्मी और पुरूष पुलिसकर्मी के बीच अंतर देखा गया, हालांकि भारतीय पुलिस में महिला आईपीएस रैंक को सम्मान से देखा गया लेकिन ऐसे मामले भी कम नहीं रहे जिसमें पुलिसकर्मियों ने ही अपनी महिला सहकर्मियों या अधिनस्थ महिलापुलिस अधिकारी का शोषण किया, पुलिस को इन सभी तरह की परेशानियों से निजात दिलाने की जरूरत है, तभी भारत की आतंरिक रक्षापंक्ति मजबूत हो सकेगी।

'लव गडकरी'

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -