अपनी कविताओं से देशभक्ति का जुनून जगा देते थे मैथिलीशरण गुप्त
अपनी कविताओं से देशभक्ति का जुनून जगा देते थे मैथिलीशरण गुप्त
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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का नाम सुनते ही सबसे पहले उनकी राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति की कवितायें याद आती हैं। आज उनका 132वा जन्मदिन है। तो आइए उनके जन्मदिन के इस अवसर पर आज हम आपको उनका जीवन परिचय करवाते है। मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 को झांसी में हुआ था और उन्हें साहित्य जगत में सम्मान से ‘दद्दा’ नाम से संबोधित किया जाता था। उन्हे हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक प्रभावी और लोकप्रिय रचनाकारों में से एक माना जाता हैं।  उनकी कविताओं में बौद्ध दर्शन, महाभारत और रामायण के कथानक स्वत: उतर आते हैं। खड़ी बोली हिंदी के रचनाकार, मैथिलीशरण गुप्त ने 12 साल की उम्र से ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं।

59 वर्षों में गुप्त जी ने हिंदी को लगभग 74 रचनाएं प्रदान की हैं, जिनमें दो महाकाव्य,17 गीतिकाव्य, 20 खंड काव्य,  चार नाटक और गीतिनाट्य हैं। महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि कहे जाने का गौरव प्रदान किया था। भारत सरकार ने उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें दो बार राज्यसभा की सदस्यता भी प्रदान की थी। उनके द्वारा लिखी गयी पंक्तियां किसी के भी दिल में देशप्रेम भर सकती हैं। उदहारण के लिए उनकी इन पंक्तियों पर गौर फरमाइए

'जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं।

वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।''

"नर हो न निराश करो मन को

कुछ काम करो कुछ काम करो

जग में रहके निज नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो न निराश करो मन को ।"

इस तरह की सैकड़ो कवितायें लिखने वाले मैथिलीशरण गुप्त जी का निधन 12 दिसंबर, 1964 को झांसी में हुआ था।

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