यूएन क्लाईमेट चेंज काॅन्फ्रेंस - भारत के लिए एक चुनौति
यूएन क्लाईमेट चेंज काॅन्फ्रेंस - भारत के लिए एक चुनौति
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पेरिस। संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भागीदारी लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस पहुंचे। यहां राजधानी पेरिस में यूएन क्लाईमेट चेंज काॅन्फ्रेंस 2015 का शुभारंभ होगा। हालांकि यह भारत के लिए कुछ मुश्किलभरा रहेगा। क्योंकि योरप  में भारत का जमकर विरोध हो रहा है। विश्व के लगभग 150 देश इस सम्मेलन में भागीदारी कर रहे हैं। भारत को इस सम्मेलन से कई तरह की संभावनाऐं हैं। हालांकि भारत को विकसित देशों द्वारा कहा गया है कि वह विकासशील देशों के दायरे से बाहर आकर पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारकों को रोके।

मगर भारत अपनी ओर से यह पक्ष रखने जा रहा है कि भारत की जनसंख्या की जरूरतों की पूर्ति के लिए उसे इन संसाधनों पर निर्भर रहना जरूरी है। इस सम्मेलन में भी अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मध्य भेंट होगी। मोदी और ओबामा की यह सातवीं भेंट होगी। 

 इस सम्मेलन में भागीदारी करने के लिए पेरिस पहुंचने वाले केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल द्वारा इसकी जानकारी दी गई। उन्होंने ट्विटर पर ट्विट किया कि ग्लोबल वार्मिंग एक सच्चाई बन गई है। जिसके कारण जलवायु में होने वाले प्रभावों को विश्व देख  पा रहा है। विश्व को इसे एक गंभीर समस्या मानकर इन सभी बातों पर विचार करना होगा।  

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भागीदारी को लेकर यह कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों और आम जन को जागरूक बनाऐंगे। उल्लेखनीय है कि मन की बात में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलवायु परिवर्तन की बात कहते आए हैं। जलवायु परिवर्तन पर  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता जताई थी और लोगों का पर्यावरण परिवर्तन को लेकर ध्यान खींचा था। हालांकि भारत द्वारा पहले भी कई बार अक्षय ऊर्जा के उपयोग पर भारत जोर देता आया है।

सरकार द्वारा सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा के प्रोजेक्टस पर कार्य किए जाने की चर्चाऐं सामने आती रही हैं। यह सम्मेलन 12 दिनों तक चलेगा। जिसमें सोमवार को महागठबंधन का प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मेजबान देश फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद सामने रखेंगे। इस दौरान वे इंटरनेशनल एजेंसी फाॅर सोलर पाॅलिसी एंड एप्लीकेशन्स  पर भी चर्चा करेंगे। सम्मेलन से ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण को बचाने के लिए कानूनी तौर से बाध्यकारी समझौते पर विभिन्न निर्णय लेने के प्रयास किए जाऐंगे। 

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