PM मोदी ने समुद्र में जाकर देखी असली द्वारका, दर्शन कर कही ये बड़ी बात
PM मोदी ने समुद्र में जाकर देखी असली द्वारका, दर्शन कर कही ये बड़ी बात
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अहमदाबाद: प्रधानमंत्री मोदी 25 फरवरी को गुजरात दौरे पर थे, जहां उन्होंने कई प्रोजेक्टस का लोकार्पण एवं शिलान्यास किया। पीएम मोदी ने यहां सुदर्शन सेतु का उद्घाटन भी किया है। सुदर्शन सेतु देश का सबसे लंबा केबल ब्रिज है। इस पुल पर भगवद गीता के श्लोकों एवं प्रभु श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी घटनाओं का चित्रण किया गया है। वहीं आपको बता दें इस के चलते प्रधानमंत्री मोदी ने समंदर में नीचे स्कूबा डाइविंग के माध्यम से द्वारका नगरी के दर्शन किए। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी अपने साथ समंदर में प्रभु श्रीकृष्ण को अर्पित करने के लिए मोर पंख लेकर गए थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि प्रभु श्रीकृष्ण की कर्मभूमि द्वारिकाधाम को मैं नमन करता हूं। देवभूमि द्वारिका में प्रभु कृष्ण द्वारकाधीश रूप में हैं। साथ ही यहां सब कुछ उनकी इच्छा से होता है। आगे उन्होंने कहा कि  मैंने गहरे समंदर के अंदर जाकर प्राचीन द्वारका जी के दर्शन किए। पीएम मोदी ने आगे कहा कि इस नगरी का निर्माण महान शिल्पकार विश्वकर्मा ने किया था तथा आज मेरा मन बहुत प्रसन्न है। दशकों का सपना आज पूरा हुआ है। द्वारका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्वारकाधीश मंदिर जाकर द्वारकाधीश भगवान के दर्शन किए। प्रधानमंत्री ने यहां कुछ दान भी दिया। उन्होंने द्वारका पीठ के शंकराचार्य के भी दर्शन कर उन्हें पुष्पमाला अर्पित की। इस के चलते शंकराचार्य ने पीएम मोदी को अंगवस्त्र एवं  रुद्राक्ष की माला भेंट की।

बेट द्वारिका में प्रभु कृष्ण का मंदिर है। इसके साथ ही इस मंदिर का निर्माण बल्लभाचार्य ने कराया था तथा तकरीबन 500 वर्ष पुराना है। मंदिर में उपस्थित भगवान द्वारकाधीश की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि इसे रानी रुक्मिणी ने स्‍वयं तैयार किया था। मान्यता है कि द्वापर युग में प्रभु श्रीकृष्ण का यहां महल हुआ करता था। साथ ही द्वारका नगरी के न्यायाधीश प्रभु श्री कृष्ण थे। इसलिए प्रभु श्री कृष्ण को यहां भक्‍तजन द्वारकाधीश के नाम से पुकारते हैं। वहीं प्रभु श्री कृष्ण की भेंट अपने मित्र सुदामा से यहीं हुई थी। साथ ही सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए थे तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे। इन्‍हीं चावलों को खाकर प्रभु श्री कृष्ण ने अपने मित्र की दरिद्रता दूर कर दी थी। इसलिए यहां आज भी चावल दान करने की परंपरा है। वहीं मंदिर में श्रीकृष्ण के साथ ही सुदामा की प्रतिमाएं भी उपस्थित हैं। वहीं द्वारका के लोग एवं मंदिर के पुजारी बताते हैं कि एक बार पूरी द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी। मगर भेंट द्वारका बची रही। इसलिए यह भाग एक छोटे से टापू पर उपस्थित है। साथ ही यहां समुद्र का जल भी स्थिर है। वहीं मंदिर का अपना अन्न क्षेत्र भी है।

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