संसद का शीतकालीन सत्र इस बार फिर गर्म रहा। दरअसल सांसदों की गहमागहमी और बहसबाजी ऐसी रही कि विकास के मसलों और विभिन्न बिलों पर चर्चा करने की फुर्सत सत्ता पक्ष को नहीं मिली और न ही विपक्ष सत्ता पक्ष पर लगाए जाने वाले आरोपों के अवसर को हाथ से जाने देना चाहता था। फिर किसी भी महत्वपूर्ण बिल के पारित हो जाने से विकास का पहिया आगे बढ़ता और वाहवाही लूटती सरकार सो सदन में हंगामा ही चलने दिया जाए।
यह सोचकर विपक्ष ने आम आदमी पार्टी नीत दिल्ली की राज्य सरकार पर सीबीआई की कार्रवाई को लेकर मसला उठा दिया। हालांकि यह कार्रवाई मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार के कार्यालय में की गई थी लेकिन आम आदमी पार्टी ने इसे केजरीवाल सरकार पर हमले के तौर पर लिया और विरोध की राजनीति तेज़ हो गई।
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को लगे हाथ मसला मिल गया। इस मसले पर अन्य पार्टियों के साथ से एक अच्छा मसाला तैयार कर दिया गया। अब लगातार हंगामा कर सदन की कार्रवाई बाधित करने के लिए एक नया जुमला मिल गया। फिर 18 माह में किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त न होने का दावा करने वाली केंद्र सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मजबूत मामला हाथ लगा।
आखिर इसे विपक्ष कैसे जाने दे। यह सोचकर वित्तमंत्री अरूण जेटली पर निशाना साधा जाने लगा। विपक्ष ने अपने तरकश के तीर पहले ही केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया पर चलाए लेकिन ये तीर सही निशाने पर नहीं लगे। ऐसे में विपक्ष भ्रष्टाचार के आरोपों से लैस इस तीर को चलाने का मौका जाने नहीं देना चाहती थी और परिणाम स्वरूप डीडीसीए का मामला संसद में उठा दिया गया।
दिल्ली जिला क्रिकेट संगठन में भ्रष्टाचार के आरोप के साथ वित्तमंत्री अरूण जेटली पर निशाना साधा गया और कहा गया कि केंद्र सरकार सीबीआई की मदद से पिछले दरवाजे से महत्वपूर्ण फाईल निकालने पहुंची थी। हालांकि अभी इस मसले पर यह तय होना है कि कौन दोषी है और कौन नहीं। इसके लिए बाकायदा जांच की जा सकती थी। पूरे समय संसद की कार्रवाई स्थगित करवाना और हंगामा कर देश के विकास को प्रभावित करना कहीं से सही नज़र नहीं आता।