पापांकुशा एकादशी से मिट जाते हैं जन्म - जन्मांतर के पाप
पापांकुशा एकादशी से मिट जाते हैं जन्म - जन्मांतर के पाप
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नईदिल्‍ली। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी का बड़ा महत्व है। इस एकादशी का नाम पापांकुशा इसलिए रखा गया क्योंकि इस दिन व्रत करने वाला अपने व्रत के पुण्य से जीवन के समस्त पापों पर अंकुश पा लेता है। इस एकादशी के दिन मौन व्रत का भी बड़ा महत्व है। महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने इस एकादशी का महत्व पांडवों में ज्येष्ठ युधिष्ठिर को बताया था।

इस दिन भगवान का स्मरण करने से मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक शांति मिलती है। भगवान का स्मरण कर भोजन करने से शरीर, मन शुद्ध होता है। इस एकादशमी को महत्वपूर्ण माना गया है। एकादशी व्रत को चंद्रमा की कलाओं से जोड़कर भी देखा जाता है। मान्यता के अनुसार चंद्रमा लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित करता है।

ऐसे में एकादशी का व्रत करने से चंद्रमा के नकारात्मक असर को दूर किया जा सकता है। एकादशी का सीधा असर मन और शरीर पर होता है। चित्त के संस्कार जागृत होते हैं और जीवन व शरीर की अशुभता नष्ट हो जाती है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन करना बेहद पुण्यफलदायी होता है।

एकादशी का पूजन करने के लिए प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान, ध्यान आदि करें। भगवान के चित्र को विधिवत तरह से स्थापित करें। इसके बाद सफेद चन्दन व गोपी चन्दन के साथ भगवान के चित्र का पूजन करें। यदि भगवान की मूर्ति स्थापित करें तो उसका पंचामृत अभिषेक करें।

भगवान को ऋतु फल समर्पित करें। इसके बाद भगवान का उपचास करें। आप चाहें तो एकासना व्रत कर सकते हैं। यदि किसी को अन्नदान करें तो यह अधिक उपयुक्त होगा। पूजन वाले दिन सात्विक आहार ग्रहण करें।

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