बुआ पाटिल महाराष्ट्र के सांगली के एक गांव का किसान है, वह बीते कई वर्षों से परेशान है। दरअसल उसके खेतों में उपज ही नहीं हो रही है। क्षेत्र की सोसायटी से उसने खेतों में उपयोग किए जाने वाली खाद खरीदी, खेतों में पानी का इंतजाम करने लगा लेकिन जब नई फसल के लिए वह जमीन की तैयारी करने लगा तो उसे जमीन बंजर जैसी लगने लगी। अब उसके खेत अधिक मुनाफा नहीं दे रहे। उसे लगातार खेतों के लिए ज़्यादा खाद इस्तेमाल करने की जरूरत महसूस हो रही है। अब वह परेशान है और अपने खेत को बेचने की तैयारी कर रहा है। मगर दूसरी ओर मेरठ के कृषक रामचंद्र का चेहरा खुशी से खिल उठा है। उनकी फसल पर पड़ने वाली कीटनाशकों की मार करीब 80 प्रतिशत कम हो गई है।
अब उनकी फसल अधिक पैदावार दे रही है। वे खुश हैं और जैविक खेती के तरीके को धन्यवाद दे रहे हैं। ये दोनों ही कहानियां भारत के गावों की है। मगर दोनों ही कहानियों में काफी अंतर है। इन दिनों कुछ ऐसा ही माहौल भारत के गांवों में देखने को मिल रहा है। भारत फिर से अपनी पुरानी परंपरा पर लौट रहा है। सरकारें भी इस तरह की खेती को प्रोत्साहित करने में लगी हैं। दरअसल लगातार केमिकल फर्टिलाईजर का इस्तेमाल करने से जमीन अनुपजाऊ होती जा रही थी। रासायनिक खाद का फसलों पर बड़ा नुकसान हो रहा है। जहां यह मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है वहीं कई ऐसे पक्षी रासायनिक खाद से प्रभावित हो रहे हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का भक्षण करते हैं। यही नहीं रासायनिक खाद से फसल की उत्पादकता घट रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि खेतों में रासायनिक खाद के प्रयोग करने पर साल दर साल और अधिक खाद का प्रयोग करना पड़ता है। जब यह खाद मिट्टी में मिलती है तो उसमें व्याप्त नैसर्गिक तत्वों की कमी हो जाती है और मिट्टी कम पौषक होने लगती है। ऐसे में जैविक खाद ही एक मात्र विकल्प बचता है। दरअसल जैविक खाद में इस तरह से ऐसे जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाकर पौधों को पौषकता प्रदान करते हैं वहीं सिंचाई करने पर पानी में नाईट्रोजन को घुलनशीलबनाकर फसल को पुष्ट करते हैं। ऐसे में फसल को प्राकृतिक पौषण प्राप्त होता है। मिट्टी प्राकृतिक तत्वों से ही उपजाउ बनती है और इसका किसी तरह का साईड इफेक्ट भी नहीं होता है। सरकार द्वारा इस खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। 42000 हैक्टेयर क्षेत्र से प्रारंभ की गई जैविक खेती आज देश में 7.5 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गई है। सरकारों के साथ कई स्वयंसेवी संगठन इस मोर्चे पर किसानों का साथ दे रहे हैं और किसानों को जैविक खाद उपलब्ध करवाई जा रही है।
इस तरह से भारतीय किसान एक बार फिर अपनी प्राचीन धरोहर पर लौट रहा है। हमारे धर्म ग्रंथों में पशुधन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। गाय के दूग्ध उत्पाद तो महत्वपूर्ण है हीं साथ ही कंडों को भी शिशु के जन्म से व्यक्ति की मृत्यु तक महत्व दिया जाता है। जिस गोबर को आज भी गांवों में घरों में लीपा जाता है वही गोबर खेतों की लिए भी अमृत का काम करता है। यह खेतों के लिए बहुत उत्पादक होता है। देशभर में ऐसे कई उदाहरण सामने आ रहे हैं जिसमें किसानों को जैविक खेती से आर्थिक लाभ हुए हैं और खेतों में बहुत बदलाव हुए हैं।
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