वात्स्यायन के देश में पाप हो गया सेक्स पर खुली चर्चा करना!
वात्स्यायन के देश में पाप हो गया सेक्स पर खुली चर्चा करना!
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आधुनिक दौर में देश में बच्चों और युवाओं को सेक्स एजुकेशन देने की चर्चा की जाती है। सही भी है सेक्स को लेकर भारतीय समाज में अधकचरी मानसिकता है। इस विषय पर बात करने से आज भी लोग हिचकते हैं। भारतीय समाज में इसे लेकर दोहरा मत अपनाया जाता है। समाज में स्थिति यह होती है कि सेक्स को लेकर किसी तरह का स्वस्थ्य चिंतन नहीं हो पाता। न तो अभिभावक अपने बच्चों से चर्चा करते हैं और न ही बच्चे अभिभावकों से चर्चा कर पाते हैं।

हालांकि चर्चा की इस बाधा में संस्कारों को आड़े आने वाला कहा जाता है। ऐसे में युवा इस विषय पर भ्रमित हो जाते हैं और अधकचरे और गलत ज्ञान के माया जाल में फंस जाते हैं। ऐसे में युवा कई तरह के जंजाल में फंस जाते हैं। मगर सेक्स के मायाजाल से बचाने के लिए युवाओं और बच्चों को उसी तरह से ज्ञान देने की जरूरत है। जिसमें भारतीय मनीषियों का चिंतन है।

दरअसल भारत में सेक्स को अत्यंत आवश्यक तत्व माना गया है। इसे धर्म में बहुत ही पवित्रता दी गई है। मगर आधुनिक दौर और बदलती दुनिया में कई ऐसे भ्रम हैं जो युवाओं को सेक्स के प्रति आकर्षित करते हैं। इस तरह से युवा भटक जाते हैं और फिर बाद में उन्हें पछतावा होता है। दरअसल सेक्स के प्रति समाज में इतनी संकीर्ण सोच घर कर चुकी है कि यह बाद में मुश्किल भरी साबित होती है।

युवा अपने मित्रों से और सहपाठियों से इसका ज्ञान लेते हैं जो कि उनके लिए मुश्किल भरा साबित होता है। हमारे समाज में सेक्स शब्द को ही गलत मान लिया जाता है। सेक्स शब्द का उल्लेख होने पर लोग इस पर होने वाली चर्चाओं से बचते हैं। सेक्स शब्द को लिखना सामाजिक मानसिकता के अनुसार पाप माना जाता है।

नतीजतन इस मसले पर खुलकर बात नहीं हो पाती और युवाओं को सही ज्ञान नहीं मिल पाता। वह देश जिसमें वात्सायन ने सदियों पहले ही कामसूत्र नामक ग्रंथ की रचना कर दी हो। वह देश जहां नगर वधू नगर की सबसे सुंदर स्त्री हुआ करती थी और वह श्रेष्ठियों को कामवासना का आनंद देती थी, वह देश जहां गणिकाओं की अवधारणा थी वहां सेक्स को लेकर दो मायने हो गए हैं खुलेआम बिकने वाला सेक्स और दबे छुपे की जाने वाली काम क्रीड़ाऐं। जिस देश में वासना को पवित्र मानकर उसे मंदिरों और अन्य स्थानों पर उकेरा जाता था वहां इसे गंदगी मान लिया जाता है। युवाओं को इस पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा करने से रोक दिया जाता है। तो दूसरी ओर उसी समाज में लोग दबे - छुपे तरीके से सेक्स के आधुनिक प्रतिष्ठानों पर जाते हैं। सेक्स के लिए अब आधुनिक और बड़े शहरों में लोगों को अधिक तलाश भी नहीं करनी पड़ती है।

ओआरजी सर्वे द्वारा इस विषय में एक सर्वे किया गया था। जिसमें यह बात सामने आई थी कि बड़े शहरों में पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव के चलते खुले तौर पर सेक्स करते हैं। पहले कौमार्य को यौवन का श्रृंगार माना जाता था तो अब 19 वर्ष की आयु में ही बच्चों का कौमार्य भंग होने लगा है, सेक्स की पूर्ति के लिए युवा कई तरह के सप्लीमेंट्स और शक्तिवर्द्धको के फेरे में पड़कर अपने स्वास्थ्य से समझौता कर बैठते हैं। जिसका उनके जीवन में नकारात्मक असर पड़ता है। सेक्स को लेकर समाज में संकुचित सोच का दायरा हटाकर एक विकसित सोच पैदा करने की जरूरत है। जिससे युवा पीढ़ी इस विषय को सहजता से ले सके और जीवन को सही डगर पर ले जा सके। 

'लव गडकरी'

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