आखिर क्या हासिल हुआ काँग्रेस को ?
आखिर क्या हासिल हुआ काँग्रेस को ?
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कोई 130 साल पुरानी काँग्रेस पार्टी मे दूरदर्शिता की कमी साफ दिखाई देती है। संसद के मानसून सत्र को पूरी तरह बाधित रखना फिर अंतिम 2 दिनो मे अन्य विपक्षी दलो द्वारा साथ छोड़े जाने से मजबूर होकर बहस मे शामिल होने से काँग्रेस की साख को नुकसान पाहुचा है। आज जनता पूछ रही है की यही करना था तो पहले दिन ही क्यो नही ? क्यो पानी मे बहाए जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ो रुपए ? वैसे भी भ्रष्टाचार के आरोप अगर तथ्यो से समर्थित न हो तो कई बार आरोप लगाने वाले गले पड़ जाते है। कौन सा मुद्दा जन-भावनाओ को उद्धेलित करता है और कौन सा 48 घंटे मे उबाऊ हो जाता है, इस बात की समझ राजनीति मे ज़रूरी है। इन मुद्दो को कैसे उठाया जाए और किस माध्यम का इस्तेमाल किया जाए इस बात की समझ भी होनी चाहिए। यह समझ भी होना चाहिए की कौन सा मुद्दा किस खंड-काल विशेष मे कितना प्रभावित करता है।

अगर मुद्दे मे चौकने वाला तत्व नही है और घिसे-पिटे तथ्य पर ही आधारित है तो मुद्दा दूर तक जन-मानस मे घर नही कर पता। साथ कुछ विधेयकों खासकर जीएसटी के बारे मे आम धारणा है की इससे सुधार और विकास होगा। जब जनता को पता चलता है की यह बिल विपक्ष की हठधर्मिता के कारण पारित नही हो रहा तो विपक्ष को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है यह बताने मे की उसका मुद्दा विकास से भारी है। काँग्रेस यह नही कर पाई। नतिजन यह संदेश भी गया की सोनिया-राहुल की पार्टी विकास विरोधी है और मोदी सरकार के विकास कार्यो को रोकना चाहती है। विकास को लेकर वैसे भी काँग्रेस का ट्रैक रिकॉर्ड जन अभिमत मे अच्छा नही रहा है।

काँग्रेस के रणनीतिकार इस बात मे फर्क नही कर पाए की क्रूड (स्थूल) भ्रष्टाचार और नेतिकता के प्रश्न मे अंतर होता है। सुषमा स्वराज को लेकर जो मुद्दा उठा वह नैतिक पैरामीटर पर तोलने वाला था, आर्थिक लाभ लाभ का मामला कभी नही बन पाया। उसके बरअक्स किसी कैंसर पीड़िता के पति को इलाज के लिए यात्रा दस्तावेज़ दिलाने के लिए विदेश के राजदूत से फोन पर बात आचार के पैमाने पर आता है। काँग्रेस ने आदान प्रदान का जो आरोप लगाया वह इतना हल्का था की जन-मानस ने इस आधार पर खारिज कर दिया की कोई किसी का वकील होकर कितना कमा लेगा।

फिर अगर काँग्रेस एक या दो दिन का व्यवधान करती तो जनता के लिए उबाऊ नही होता या फिर हर रोज इस मुद्दे पर नए तथ्य लाती तो जनमानस को झकझोरते तो भी समझ मे आता। पर मीडिया द्वारा पहले से दिये तथ्यो को पर हफ्ते-दर-हफ्ते संसद रोकना बेहद बचकाना लगा। काँग्रेस ने सबसे बड़ी गलती यह की कि उसने जो भी मुद्दा उठाया उस पर वह भी खुद कटघरे मे खड़ी थी। व्यवधान के दौरान काँग्रेस लगातार घिसे पिटे रिकॉर्ड कि तरह बजती रही उन्ही तथ्यो को लेकर जिन्हे मीडिया पहले ही दे चुका था। हमला करो और भाग जाओ कि हल्की रणनीति अपनाई गई। राहुल तथ्यो से खाली थे तो सदन के नेता मल्लिकार्जुन खडगे अभिव्यक्ति के लिए प्रवाहपूर्ण भाषा से। राहुल अक्सर बांझ उत्साह के शिकार हो जाते है।

संदीप मीणा

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