भारत विकास की राह पर लगातार अपना नाम कमा रहा है, लेकिन उसके दूसरी और नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डा. एडा ई. योनाथ का एक ‘ब्लू ड्रीम’ है. एक ऐसा सपना, जिसमें विकसित देशों की तरह भारतीयों की जीवन प्रत्याशा को भी 80 साल से ज्यादा की जिंदगी में बदलने की चाहत छिपी है. योनाथ ने यह ‘ब्लू ड्रीम’ यहां चल रही 107वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के दौरान अपने व्याख्यान में सभी के साथ साझा किया.इस्राइल के वाइजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की प्रसिद्ध जैव-रसायनविद योनाथबहु-औषण प्रतिरोधकों के बड़े खतरे की तरफ इशारा किया. उन्होंने कहा कि इससे विश्व एक बार फिर एंटीबॉयोटिक की खोज से पहले के समय जैसी हालत में पहुंच जाएगा, जब सामान्य विषाणु भी बेहद गंभीर संक्रमण का कारण बन जाते थे.
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अपने बयान में उन्होंने यह भी कहा कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2050 तक 3.8 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ेगा.योनाथ को राइबोसोम की परमाणु संरचना और काम की जटिलता को स्पष्ट करने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.उन्होंने भारतीय भौतिकविज्ञानी जीएन रामचंद्रन के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए कहा कि इस खोज के लिए उन्होंने ही मुझे प्रेरित किया था.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि योनाथ ने ‘नेक्स्ट जनरेशन नॉवेल इको-फ्रेंडली एंटीबायोटिक्स- ब्लू ड्रीम’ विषय पर व्याख्यान देते हुए एक पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन के जरिये युवा विज्ञानियों के सामने अपनी बात रखी. उन्होंने विश्व के नक्शे में नीले रंग में दिखाई दे रहे संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कुछ यूरोपीय देशों को इंगित करते हुए कहा, आप नीले रंग वाले देशों को देख रहे हैं. मैं भारत समेत सभी देशों में यही चाहती हूं.नोबेल विजेता ने इस बात पर जोर दिया कि फार्मा कंपनियों को बहु-औषध प्रतिरोधी बैक्टीरिया के खतरे को नियंत्रिकत करने के लिए एंटीबॉयोटिक्स की विस्तृत रेंज के बजाय ऐसे एंटीबॉयोटिक्स का ईजाद करना चाहिए, जो प्रभावित पैथोजेन (बीमारियों का कारण बनने वाले विषाणु) को निशाना बनाए.
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