सम्मेद शिखर पर शुरू हुआ नया विवाद, जैन समाज के बाद आदिवासी समुदाय ने किया आंदोलन का ऐलान
सम्मेद शिखर पर शुरू हुआ नया विवाद, जैन समाज के बाद आदिवासी समुदाय ने किया आंदोलन का ऐलान
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गिरिडीह: झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर मौजूद तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी को लेकर हंगामा जारी है। दरअसल, झारखंड के आदिवासी समुदाय ने अब दावा किया है कि पूरा पारसनाथ पहाड़ हमारा है। इतना ही नहीं, ट्राइबल कम्युनिटी ने बोला है कि यह हमारा धर्मस्थान है। इसे लेकर आज पारसनाथ पहाड़ पर लोगों से इकट्ठा होने की अपील की है। 

वही इसके तहत मधुबन में आयोजित आदिवासी समाज के महाजुटान कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए अलग-अलग जिलों से लोग पहु्ंचे। इस के चलते सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की गई थी। लिहाजा मधुबन बाजार स्थित कई दुकानें सुरक्षा की दृष्टि से बंद कराई गईं। साथ ही चप्पे-चप्पे पर पुलिसकर्मी उपस्थित रहे। इसके चलते हजारों आंकड़े में लोग पारंपरिक हथियार के साथ पारसनाथ पर्वत की तरफ बढ़ रहे हैं। आदिवासी समुदाय के लोगों ने केंद्र एवं राज्य सरकार के विरुद्ध खूब नारेबाजी की। इससे पहले पूर्व सांसद एवं आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने इल्जाम लगाते हुए कहा कि शिबू सोरेन ने साढ़े तीन करोड़ में झारखंड को बेचने का काम किया। अब हेमंत सोरेन झारखंड के आदिवासियों के धर्म को बेचने का काम कर रहे हैं। 

सालखन मुर्म ने कहा कि पारसनाथ पहाड़ आज राष्ट्रीय लेवल का बन गया है, मगर हम आदिवासियों का दावा है कि पारसनाथ पहाड़ हम आदिवासियों का है। वह हमारा भगवान है। हम लोग उसे मरंगगुरु बोलते हैं। उन्होंने कहा कि जब यह मामला जैन वर्सेज संथाल आदिवासियों का था, तब सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि पारसनाथ पहाड़ संथालियों का है। सालखन मुर्म ने कहा कि अब जैन धर्मावलंबियों ने पारसनाथ पहाड़ पर अपने मालिकाना हक के लिए देशभर में एक आंदोलन खड़ा कर दिया। तत्पश्चात, केंद्र सरकार ने बिना आदिवासियों से बात किए बिना उनका पक्ष सुने अपना फैसला सुना दिया। उन्होंने कहा कि इससे हम लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। इसमें पूरा दोष झारखंड सरकार का है। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को आदिवासी विरोधी सरकार बताते हुए मुर्मू ने कहा कि सोरेन परिवार आदिवासियों का वोट लेकर आदिवासियों को ही धोखा देने का काम करता है। सालखन मुर्मू ने पारसनाथ पहाड़ी को अपनी धरोहर एवं पूज्य स्थान बताते हुए इस पर दावा ठोका है। साथ-साथ धरोहर को बचाने के आह्वान के साथ 10 जनवरी (आज) यहां देश भर के आदिवासियों से जुटने का आग्रह किया है।

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