क्या आप माखनलाल चतुर्वेदी जी के नाम से परिचित हैं, अरे वही जो बचपन में माखन खाया करते थे इसलिए ही तो उनकी मां ने उनका नाम मा खनलाल रख दिया था। है न आप भी चकरा गए! अजी हम गांव के छोरे माखनलाल की बात नहीं कर रहे हैं हम तो बात कर रहे हैं स्वाधीनता संग्राम में अपने संघर्ष से अंग्रेजों के दांत खट्टे कर देने वाले माखनलाल चतुर्वेदी जी की। जी हां, माखनलाल चतुर्वेदी जी जिन्होंने कर्मवीर का संपादन किया ये प्रखर राष्ट्रवादी थे। इनकी पत्रकारिता में भी ब्रिटिश राज व्यवस्था के प्रति असंतोष झलकता था। मगर यह दुर्भाग्य ही है कि आज के दौर में इन क्रांतिकारियों के बिसराया जा रहा है।
कई ऐसे क्रांतिकारी हैं जिनके नाम और जिनके बारे में आज की पीढ़ी नहीं जानती है। भारतीय स्वतंत्रता का अर्थ है एक आकर्षक रैपर में लिपटी हुई मार्केटिंग स्ट्रेजी। अपनी पसंद के परिधान पहनकर अपने साथियों, परिवार के सदस्यों और चाहने वालों के साथ माॅल में जाना और जमकर शाॅपिंग करना। चाहिए शाॅपिंग करने से लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी और बाजार का ठहराव कम होगा लेकिन क्या मन चाहे तरीके से सड़को पर शोर करते हुए निकलना या स्वाधीनता दिवस के नाम पर क्रातिकारियों व महापुरूषों को भूल जाना या केवल फौरी तौर पर याद कर लेना क्या पर्याप्त है।
वर्तमान में व्यक्ति व्यक्तिगत होता जा रहा है। उसे अपने आप से और अपने परिवार के अलावा किसी और से कोई सरोकार नहीं है। ऐसे में वह मूल्यों को ताक पर रख देता है और कई बार स्वार्थ पूर्ण करने के लिए राष्ट्र के हितों से समझौता कर लेता है। ऐसे में राष्ट्र की एकता, अखंडता आदि प्रभावित होती है।