अगर आप नहीं रख रहे हैं नवरात्र का व्रत तो जरूर पढ़े या सुने यह कथा
अगर आप नहीं रख रहे हैं नवरात्र का व्रत तो जरूर पढ़े या सुने यह कथा
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आप जानते ही हैं कि इस बार नवरात्रि का पर्व 29 सितंबर से शुरू होने जा रहा है. ऐसे में कहा जाता है बहुत से भक्तगण इस दौरान व्रत रखते हैं और किसी न किसी चीज़ का 9 दिनों तक त्याग भी अवश्य करते हैं. वहीं इस दौरान लोग अपने घरों में घट स्थापना के साथ-साथ अखंड ज्योत भी जगाते हैं लेकिन जो लोग व्रत आदि नहीं कर पाते, उनके लिए आज हम नवरात्रि से जुड़ी एक ऐसी कथा बताने जा रहे हैं, जिसके पढ़ने व सुनने से ही माता की कृपा को पाया जा सकता है. जी हाँ, जो लोग व्रत नहीं रखते हैं वह हर दिन इस कथा को पढ़ या सुनकर भी लाभ ले सकते हैं. आइए जानते हैं कथा.

कथा- कौशल देश में सुशील नामक का एक निर्धन ब्राह्मण रहता था. प्रतिदिन मिलने वाली भिक्षा से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता था. उसके कई बच्चे थे. प्रातःकाल वह भिक्षा लेने घर से निकलता और शाम को लौट आता था. देवताओं, पितरों और अतिथियों की पूजा करने के बाद आश्रितजन को खिलाकर ही वह स्वयं भोजन ग्रहण करता था. इस प्रकार भिक्षा को वह भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करता था. वह हमेशा दूसरों की सहायता के लिए तैयार रहता था. उसके हृदय में कभी किसी के लिए क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या जैसे विकार उत्पन्न नहीं होते थे.

एक बार उसके घर के निकट सत्यव्रत नामक एक तेजस्वी ऋषि आकर ठहरे. मंत्रों और विद्याओं का ज्ञाता उनके समान आस-पास दूसरा कोई नहीं था. शीघ्र ही अनेक व्यक्ति उनके दर्शनों को आने लगे. सुशील के हृदय में भी उनसे मिलने की इच्छा जागृत हुई और वह उनकी सेवा में उपस्थित हुआ.सत्यव्रत ऋषि को प्रणाम करके वह बोला 'ऋषिवर! आपकी बुद्धि अत्यंत विलक्षण है. आप अनेक शास्त्रों, विद्याओं और मंत्रों के ज्ञाता हैं. मैं एक निर्धन, दरिद्र और असहाय ब्राह्मण हूं. कृपया मुझे बताएं कि मेरी दरिद्रता किस प्रकार समाप्त हो सकती है?' आपसे यह पूछने का केवल इतना ही अभिप्राय है कि मुझ में कुटुंब का भरण-पोषण करने की शक्ति आ जाए.

धन आभाव के कारण मैं उन्हें समुचित सुविधाएं और अन्य सुख नहीं दे पा रहा हूं. दयानिधान! तप, दान, व्रत, मंत्र अथवा जप-आप कोई ऐसा उपाय बताने का कष्ट करें, जिससे कि मैं अपने परिवार का यथोचित भरण-पोषण कर सकूं. मुझे केवल इतने ही धन का अभिलाषा है, जिससे कि मेरा परिवार सुखी हो जाए.' तब सत्यव्रत ऋषि ने सुशील को भगवती दुर्गा की महिमा बताते हुए नवरात्रि व्रत करने का परामर्श दिया. सुशील ने सत्यव्रत को अपना गुरु बनाकर उनसे मायाबीज नामक भुवनेश्वरी मंत्र की दीक्षा ली. तत्पश्चात नवरात्रि व्रत रखकर उस मंत्र का नियमित जप आरंभ कर दिया. उसने भगवती दुर्गा की श्रद्धा और भक्तिपूर्वक आराधना की.

नौ वर्षों तक प्रत्येक नवरात्रि में वह भगवती दुर्गा के मायाबीज मंत्र का निरंतर जप करता रहा. सुशील की भक्ति से प्रसन्न होकर नौवें वर्ष की नवरात्रि में, अष्टमी की आधी रात को देवी भगवती साक्षात प्रकट हुईं और सुशील को उसका अभीष्ट वर प्रदान करते हुए उसे संसार का समस्त वैभव, ऐश्वर्य और मोक्ष प्रदान किया. इस प्रकार भगवती दुर्गा ने प्रसन्न होकर अपने भक्त सुशील के सभी कष्टों को दूर कर दिया और उसे अतुल धन-संपदा, मान-सम्मान और समृद्धि प्रदान की.

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