नवरात्रि दर्शन महाकवि कालिदास की आराध्या माॅं गढ़कालिका
नवरात्रि दर्शन महाकवि कालिदास की आराध्या माॅं गढ़कालिका
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उज्जैन तीर्थों की तीर्थ स्थली के रूप में प्रतिष्ठित तो है वहीं यहां के अधिपति भूत भावन भगवान को माना जाता है। सम्राट विक्रमादित्य की भी यही नगरी होकर देश विदेश में प्रसिद्ध है। इतिहास में ऐसा उल्लेख मिलता है कि सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में नौ रत्न हुआ करते थे। इन्हीं में से एक थे महाकवि कालिदास।

इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि महाकवि कालिदास को ज्ञान की प्राप्ति किसी देवी के मंदिर में ही हुई थी। जिसे गढ़कालिका माता कहा जाता है। उज्जैन की प्राचीन बस्ती में गढ़कालिका माता का मंदिर विद्यमान होकर चमत्कारी है तो वहीं यहां हर दिन ही भक्तों का तांगा लगा रहता है। 

एक चैरस टीले पर गढ़कालिका का मंदिर है। यह देवी महाकवि कालिदास की आराध्या रही है। हालांकि इतिहास में यह भी बताया गया है कि मंदिर का जीर्णोद्धार ईस्वी सन 606 में सम्राट हर्षवर्द्धन द्वारा कराया गया था। 

शारदीय नवरात्रि के साथ ही चैत्र नवरात्रि में भी इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ रहता है। मंदिर में स्थित दीप स्तंभ पर दीपों को प्रकाशमान किया जाता है तो समूचा मंदिर परिसर रोशनी से आच्छादित हो उठता है। मंदिर के समीप ही स्थिरमन गणेश का मंदिर है। इसी मंदिर के उत्तर में विष्णु चतुष्टिका का भी मंदिर अवस्थित है।

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