विदेश यात्रा या ख्याली पुलाव
विदेश यात्रा या ख्याली पुलाव
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लोगो से भरा खचाखच स्टेडियम, स्टेडियम पर खड़े इंसान को आती शहंशाह वाली फीलिंग, स्टेडियम में बैठे 70-80 हजार लोग औऱ उसके टिकट के लिए महीनों पहले से होने वाली जद्दोजहद कितनी सुखदायी फीलिंग देती होगी.... जब नेता जी स्टेडियम पर खड़े भाषण के शब्दों में फिल्मी डायलॉग लपेट कर जनता तक थ्रो करते होंगे। मेरा सीधा तात्पर्य विदेश यात्राओं से है। गुरेज नही है, मुझे पर इसका आउटपुट क्या है यानि रिजल्ट? ये जानने की इच्छा जरुर है।

गिफ्ट में महंगे घोड़े, तीर कमान से लेकर साड़ी तक तो ठीक है, इनकी बोलिया लगाकर नीलामी भी हो चुकी पर जनता ने 41.11 करोड़ रुपए खर्च करके क्या पाया। दरअसल एक साल में ही पीएम के विदेश दौरे पर लगभग 41 करोड़ रुपए खर्च हो चुके है। ये पैसे हमारी आपकी जेब से ही जा रहे है। अब तक की बात करे तो ताजा परिणाम है, जापान के साथ हुआ बुलेट ट्रेन समझौता। जो सात सालों बाद दिखेगा। जिसके लिए जापान ने भारत को 93000 करोड़ रुपए का लोन 0.5% ब्याज पर 50 सालों के लिए दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राएँ तो चर्चा का विषय बन जाती है, क्यों कि उसका सीधा प्रसारण 1 सप्ताह पहले से ही शुरु हो जाती है। हर छोटी-बड़ी बात बताई जाती है। विदेश यात्रा की चर्चा इतनी ज्यादा बढ़ गई कि स्वंय पीएम को इस संबंध में राज्यसभा में क्लेरिफिकेशन देना पड़ा। कुल 365 दिनों में 53 बार 17 देशों की यात्रा की गई। इस मामले में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह भी थोड़े ही कदम की दूरी पर है। मनमोहन सिंह ने 1 साल में 45 बार 12 देशों की यात्रांए की। कई एमओयू साइन होते है, जो आने वाले 10 साल के भीतर शायद इंप्लीमेंट हो। पर एक सवाल यह भी है कि क्या मोदी सरकार वापस सता में आएगी। यदि नही आई तो जाहिर है ये योजनांए काल के गर्त में चली जाएंगी अर्थात् सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। फिर इस 41 करोड़ का क्या।

क्योंकि इन यात्राओं का एक पहलू यह भी है कि बुलेट ट्रेन चले या परमाणु विस्फोट हो, इससे आम आदमी को क्या मिलेगा। उसे दो वक्त की दाल रोटी ही चाहिए। जिस पर अमावस्या का ग्रहण लगा हुआ है। पेट भरा रहे तभी दुनिया के सारे ख्याली पुलाव सुहाने लगते है। इन विदेश यात्राओं से हमने सिर्फ लिया ही नही है बल्कि नेपाल व भूटान जैसे देशों को दिया भी है। इन सबमें एक बात जो सबसे उम्दा थी वो पीएम का अपने विदेश दौरों पर दिया गया जवाब है। जिसमें वो खुद ही पूछ रहे कि क्या राजनीति इस कदर गिर गई है कि हम इन मुद्दों पर चर्चा करे। पीएम मोदी के अलावे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी तीन बार, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह दो बार और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तीन बार, विदेश सचिव एस जयशंकर एक बार और उपराष्ट्रपति की यात्राएँ भी शामिल है।

कुछ भी हो कोई जादू की छड़ी की उम्मीद किसी ने नही की। पर फख्र के साथ सिर उठाने के लिए पेट में अनाज का दाना जरुरी है। हो सकता है कुछ बड़ा करने के लिए बड़े स्तर पर काम करना पड़े। पर हम बेहद सहिष्णु है, इंतजार करना हमें आता है, पर तब जब गारंटी 100% हो।

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