मोदी यात्रा के मायने या अमेरिकी निमंत्रण के फायदे
मोदी यात्रा के मायने या अमेरिकी निमंत्रण के फायदे
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पधारो म्हारो.... देश देश रे....आखिर इसमें फायदा किसका है? जी नहीं हम राजस्थान टूरिज्म की बात नहीं कर रहे बल्कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चौथी अमेरिका यात्रा की बात कर रहे है. दो सालों में मोदी चार बार अमेरिका गए और सात बार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की. पहला दौरा तो आप सबको याद ही होगा जब मेडिसिन स्कवायर पर खड़ा हर कोई मोदी भक्त था. इस दौरान मोदी की बुराई करने पर पिटाई (राजदीप सरदेसाई की पिटाई) भी हो गई थी।

इस दौरे में भारत और अमेरिका के कुछ आकर्षक तत्व भी है. सबसे बड़ी बात पीएम अमेरिकी संसद को संबोधित करने वाले है. इससे पहले 13 अक्टूबर 1949 को जवाहर लाल नेहरू ने, 13 जून 1985 को राजीव गांधी ने, 18 मई 1994 को पी वी नरसिंहा राव ने, 14 सितंबर 2000 को अटल बिहारी वाजपेयी ने और 19 जुलाई 2005 को मनमोहन सिंह ने भी अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया था. लेकिन इस बार अमेरिका पहुंचे मोदी की तारीफ में यूएस मीडिया क्यों उनके पुराने चिठ्ठे का बार-बार जिक्र कर रहा है।

पुराना चिठ्ठा यानि गुजरात दंगा, जिसके बाद मोदी को अमेरिका में प्रवेश वर्जित कर दिया गया था. आखिर मोदी और यूएस मीडिया का रिश्ता पुराना है. मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर मोदी ने अपऩा इकलौता इंटरव्यू वॉल स्ट्रीट को ही दिया था. दंगों के आरोप में सज़ा के तौर पर इसी मोदी को एक दशक तक अमेरिका ने वीज़ा नहीं दिया, वही मोदी अब न्यूयॉर्क में एक लोकप्रिय नेता और आवश्यक पार्टनर की भूमिका में पहुंचे है, जो कि चाइना के बढ़ते प्रभाव को बैलेंस करने में सक्षम है।

यह मुलाकात ऐसे समय में हो रही है जब एक ओर ओबामा की राष्ट्रपति के तौर पर विदाई की घड़ी पास आ रही है, तो दूसरी ओर यूएस और चीन के बीच दक्षिणी चीन सागर को लेकर विवाद गहरा रहा है. इसके लिए अमेरिका और भारत के बीच एक डील भी हुई है. तो वहीं भारत भी मोदी की इस यात्रा की आड़ में न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप में एंट्री पाने की फिराक में है. इन सबके बावजूद इस बार अमेरिकी मीडिया ने मोदी के बारे में जो लिखा वो हैरान करने वाला है. न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि ओबामा एक अच्छे पति हैं, पिता हैं, बच्चों के साथ दोस्ती है. मगर मोदी की किसी से सार्वजनिक दोस्ती नहीं है और उन्होंने अपनी पत्नी को भी छोड़ दिया है।

2010 में अमेरिका चाहता था कि भारत न्यूक्लियर लायबिलिटी एक्ट में बदलाव कर दें. इसे तब की सरकार ने भी और अब की सरकार ने भी रिजेक्ट कर दिया था. ऐसे में सवाल ये है कि इस यात्रा से मोदी और ओबामा की क्या मंशा है. क्या दोस्ती के बहाने ओबामा लायबिलिटी एक्ट में बदलाव करवाएंगे? क्या परमाणु क्षेत्र के कारोबार में बढ़ोतरी होगी? भारत को भी परमाणु बेचने है और खरीदने है. ऐसे में क्या एऩएसजी सदस्यता के लालच के बहाने अमेरिका अपना स्वार्थ साधेगा? क्यों कि तले के नीचे से सब जानते है कि जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका इस बाजार को हाथ से नहीं जाने देगी।

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