द्वादश भावों में मंगल फल
द्वादश भावों में मंगल फल
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यदि मंगल लग्न या प्रथम भाव में हो तो जातक क्रूर, साहसी, चपल, महत्वाकांक्षी, लौहधातु व चोट आदि से कष्ट पाने वाला व्यवसाय में हानि उठाने वाला होता है। द्वितीय भाव में हो तो कटुभाषी, धनहीन, निर्बुद्धि, पशुपालक, कुटुम्ब क्लेषी, धर्मप्रेमी, नेत्र कान रोगी होता है। तृतीय भाव में हो तो प्रसिद्ध शूरवीर, धैर्यवान, साहसी, बंधुहीन, प्रदीप्त, जठराग्नि युक्त झाइयों के लिए कष्टकारक व कटुभाषी होता है। चतुर्थ भाव में हो तो वाहन सुखी, संततिवान, मातृ सुखविहीन, प्रवासी, अग्नि भय युक्त, अल्पमृत्यु, कृषक, बंधु विरोधी होता है।

पंचम भाव में हो तो अग्रबुद्धि, कपटी, व्यसनी, रोगी उदर रोगी, गुप्तांग रोगी, चंचल, बुद्धिमान, क्लेष प्रिय होता है। छटवें भाव में हो तो प्रबल अफसर, दाद रोगी, क्रोधी होता है। सातवें भाव मे हो तो शीघ्र क्रोधी, स्त्री सुख हीन, राजभीरू, कटुभाषी, धूर्त, मूर्ख, निर्धन, घातकी, धननाशक होता है। आठवें भाव में भाव हो तो व्याधिग्रस्त, व्यसनी, मद्य प्रिय, कठोर भाषी, नेत्र रोग, शस्त्र चोर, संकोच, रक्त विकार धन की चिंता से युक्त होता है।

नवें भाव में हो तो द्वेषी, अभिमानी, कोधी, नेता, अधिकारी, ईष्यालु, अल्पलाभी, यशस्वी, असंतुष्टि, भ्रातृविरोधी होता है। दसवें भाव में हो तो धनवान कुलदीपक, उत्तम वाहनों से युक्त, स्वाभिमानी संतान से कष्ट पाने वाला होता है। ग्यारहवें भाव में हो तो दंभी, कटुभाषी, झगड़ालू, क्रोधी, अल्पभाषी, प्रवासी, न्यायवान, धैर्यवान होता है। बारहवें भाव में हो तो नेत्र रोगी स्त्री से कष्ट पाने वाला झगड़ालू, मूर्ख व व्ययाशील प्रवृत्ति का होता है।

एक जड़ ही पास रखें तो हो मंगल की शांति

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