वरदान था फट जाएगा जयद्रथ को मारने वाले का मस्तक लेकिन फिर इस तरह से बच गए थे अर्जुन
वरदान था फट जाएगा जयद्रथ को मारने वाले का मस्तक लेकिन फिर इस तरह से बच गए थे अर्जुन
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महाभारत की कई ऐसी कहानी हैं जो सभी को जननी चाहिए क्योंकि वह कोई ना कोई सीख देती है. ऐसे में महाभारत के कुछ ऐसे रोचक किस्से हैं जिसके बारे में कई लोगों नहीं जानते हैं. जी हाँ, ऐसे में एक है जयद्रथ और उसके वध की कहानी, जो बेहद दिलचस्प है. जी हाँ, आप सभी को बता दें कि जयद्रथ दरअसल कौरवों की बहन दुशाला का पति था और उसका वध महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने किया था और जयद्रथ को अपने पिता वृद्धक्षत्र से एक वरदान मिला था कि उसका सिर जमीन पर गिराने वाले शख्स के मस्तक में भी उस समय जबर्दस्त विस्फोट होगा और वह भी मारा जाएगा. वहीं उसके बाद भी अर्जुन इसे मारने में कामयाब रहे और ऐसे में सवाल है कि आखिर अर्जुन ने कैसे इस काम को अंजाम दिया. जी हाँ, दरअसल इसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है और इन सभी में खास बात ये भी है कि जयद्रथ की दुश्मनी युद्ध के काफी पहले से ही पांडवों के साथ शुरू हो गई थी. आप सभी को बता दें कि जयद्रथ और उसे मिले वरदान की कहानी और इस बारे में भी आखिर कैसे उसकी दुश्मनी पांडवों से शुरू हुई.

कौन था जयद्रथ और कैसे शुरू हुई पांडवों से उसकी दुश्मनी -  जयद्रथ सिंधु देश का राजा था और उसका विवाह दुर्योधन की बहन दुशाला से हुआ था. ऐसे में वह पांडवों सहित कौरवों का रिश्तेदार था. महाभारत कथा के अनुसार पांडव जब चौसर के खेल में अपना सबकुछ हारकर 12 साल का वनवास काट रहे थे, उसी समय उनका सामना जयद्रथ से हुआ. जयद्रथ एक दिन उसी जंगल से गुजर रहा था जहां पांडव रह रहे थे.
दिन का समय था और पांडवों की पत्नी द्रौपदी नदी किनारे से लौट रही थीं. इसी दौरान जयद्रथ ने द्रौपदी को अकेला देखा तो उन्हें अपनी बातों में फुसलाने और अपने साथ ले जाने की बात करने लगा. द्रौपदी ने पहले एक-दो बार चेतावनी दी लेकिन जयद्रथ नहीं माना और द्रौपदी का हरण कर लिया. पांडवों को जब इस बात की सूचना मिली तो वे जयद्रथ का पीछा करने लगे और उसे बीच रास्ते में रोक दिया. भीम तो इतने गुस्से में थे कि वे जयद्रथ का वध करना चाहते थे. लेकिन अर्जुन ने उसके दुशाला का पति होने के कारण भीम को ऐसा करने से रोक दिया. भीम इस पर भी नहीं माने और उन्होंने जयद्रथ के बाल मूंड दिये और पांच चोटियां छोड़ दी.

जयद्रथ को मिला वरदान - पांडवों से इस तरह पराजित होने के बाद जयद्रथ अपमानित महसूस कर रहा था. जयद्रथ ने इसके बाद भगवान शिव की घोर तपस्या की और पांडवों पर जीत हासिल करने का वरदान मांगने लगा. भगवान शिव उसकी तपस्या से खुश थे. भगवान शिव ने कहा कि पांडवों से जीतना या उन्हें मारना किसी के बस में नहीं है लेकिन जीवन में एक दिन वह किसी युद्ध में अर्जुन को छोड़ बाकी सभी भाईयों पर भारी पड़ेगा. जयद्रथ को मिला यही वरदान अभिमन्यु के मृत्यु का कारण बना. अभिमन्यु युद्ध करते- करते चक्रव्यूह में प्रवेश कर गये. हालांकि, उनके पीछे भीम सहित बाकी तीन पांडव भाई उसमें प्रवेश नहीं कर सके. जयद्रथ ने अकेले ही सबको रोक लिया. चूकी अर्जुन युद्ध करते-करते काफी दूर निकल गये थे, ऐसे में उनके लौटने तक बहुत देर हो चुकी थी और कौरव अपना काम कर चुके थे.

अर्जुन ने लिया अभिमन्यु की मौत का बदला - अर्जुन जब शाम तक लौटे तो उन्हें अपने बेटे के मारे जाने की खबर मिली. इस पर उन्होंने प्रण लिया कि अगले दिन वे जयद्रथ का या तो शाम तक वध कर देंगे या फिर अग्नि में समाधी ले लेंगे. अगले दिन कृष्ण की माया से अर्जुन आखिरकार जयद्रथ का वध करने में कामयाब रहे. दरअसल, दिन भर कौरव जयद्रथ को छिपाने में कामयाब रहे. कौरव जानते थे कि अगर जयद्रथ नहीं मारा गया तो अर्जुन अपने आप समाधि ले लेंगे और इसका फायदा उन्हें युद्ध में मिलेगा. भगवान कृष्ण ने जब देखा कि सूर्य अस्त होने वाला है तो उससे ठीक पहले उन्होंने एक माया रची. कृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को बादलों से इस प्रकार ढक दिया कि मानो शाम हो गई. यह देख जयद्रथ और उसकी रक्षा करने वाले खुश हो गये. जयद्रथ अर्जुन के रथ के ठीक सामने आकर हंसने लगा और खुशियां मनाने लगा. इसके बाद कृष्ण ने एक बार फिर अपनी माया दिखाई और सूर्य बादलों से बाहर आ गया. फिर क्या था कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया.

क्यों नहीं फटा अर्जुन का सिर - श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पहले ही जयद्रथ को मिले गुप्त वरदान के बारे में बता दिया था. इसके अनुसार जो भी वीर इसका सिर धरती पर गिराएगा, उसके मस्तक में भी विस्फोट होगा. कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि उन्हें इस प्रकार बाण चलाना होगा कि जयद्रथ का मस्तक कट कर उसके पिता की गोद में गिरे जो उस समय समंतकपंचक क्षेत्र में तपस्या कर रहे हैं. अर्जुन ने ऐसा ही किया. अर्जुन ने तीर चलाकर जयद्रथ का मस्तक काट दिया, यह मस्तक हवा में उड़ता हुए सीधे वृद्धक्षत्र की गोद में जाकर गिरा. वृद्धक्षत्र इस समय आंखे बंद कर तपस्या में लीन थे. उन्होंने आंखे खोलते ही अचानक जैसे ही एक मस्तक अपनी गोद में पड़ा देखा, वे घबरा गये और बिना कुछ सोचे-समझे उसे पृथ्वी पर गिरा गिया. इस प्रकार उनके मस्तक में विस्फोट हुआ और वे भी मारे गये.

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