यहाँ जानिए कैसे पड़ा था माँ दुर्गा का नाम माँ भगवती
यहाँ जानिए कैसे पड़ा था माँ दुर्गा का नाम माँ भगवती
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हर साल नवरात्र का पर्व मनाया जाता है और यह पर्व सभी के लिए बड़ा ही ख़ास माना जाता है. ऐसे में इस समय चैत्र नवरात्रि का पर्व चल रहा है और इस दौरान माँ की पावन कथाओं को सुनने मात्र से आपके सभी काम बन जाते हैं. अब आज हम आपको बताने जारहे हैं माँ की दो ऐसी कथा जिसे सुनने मात्रा से आपके सभी कष्ट कट जाएंगे. आइए जानते हैं.  

कथा - पुरातन काल में दुर्गम नाम का एक अत्यंत बलशाली दैत्य हुआ करता था. उसने ब्राहमाजी को प्रसन्न कर के समस्त वेदों को अपनें आधीन कर लिया, जिस कारण सारे देव गण का बल क्षीण हो गया. इस घटना के उपरांत दुर्गम नें स्वर्ग पर आक्रमण कर के उसे जीत लिया.और तब समस्त देव गण एकत्रित हुए और उन्होने देवी माँ भगवती का आह्वान किया और फिर देव गण नें उन्हे अपनी व्यथा सुनाई. तब माँ भगवती नें समस्त देव गण को दैत्य दुर्गम के प्रकोप से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया.

माँ भगवती नें दुर्गम का अंत करने का प्रण लिया है, यह बात जब दुर्गम को पता चली तब उसने सवर्ग लोग पर पुनः आक्रमण कर दिया. और तब माँ भगवती नें दैत्य दुर्गम की सेना का संहार किया और अंत में दुर्गम को भी मृत्यु लोक पहुंचा दिया. माँ भगवती नें दुर्गम के साथ जब अंतिम युद्ध किया तब उन्होने भुवनेश्वरी, काली, तारा, छीन्नमस्ता, भैरवी, बगला तथा दूसरी अन्य महा शक्तियों का आह्वान कर के उनकी सहायता से दुर्गम को पराजित किया था.

इस भीषण युद्ध में विकट दैत्य दुर्गम को पराजित करके उसका वध करने पर माँ भगवती दुर्गा नाम से प्रख्यात हुईं.

कथा 2-  देवताओं और राक्षसों के बीच एक बार अत्यंत भीषण युद्ध हुआ. रक्त से सराबोर इस लड़ाई में अंततः देवगण विजयी हुए. जीत के मद में देव गण अभिमान और घमंड से भर गए. तथा स्वयं को सर्वोत्तम मानने लगे. देवताओं के इस मिथ्या अभिमान को नष्ट करने हेतु माँ दुर्गा नें तेजपुंज का रूप धारण किया और फिर देवताओं के समक्ष प्रकट हुईं. तेजपुंज विराट स्वरूप देख कर समस्त देवगण भयभीत हो उठे. और तब सभी देवताओं  के राजा इन्द्र नें वरुण देव को तेजपुंज का रहस्य जानने के लिए आगे भेजा.

तेजपुंज के सामने जा कर वरुण देव अपनी शक्तियों का बखान करने लगे. और तेजपुंज से उसका परिचय मांगने लगे. तब तेजपुंज नें वरुण देव के सामने एक अदना सा, छोटा सा तिनका रखा और उन्हे कहा की तुम वास्तव में इतने बलशाली हो जितना तुम खुद का बखान कर रहे हो तो इस तिनके को उड़ा कर दिखाओ.

वरुण देव नें एड़ी-चोटी का बल लगा दिया पर उनसे वह तिनका रत्ती भर भी हिल नहीं पाया और उनका घमंड चूर-चूर हो गया. अंत में वह वापस लौटे और उन्होने वह वास्तविकता इन्द्र देव से कही .

इन्द्र देव नें फिर अग्नि देव को भेजा. तेजपुंज नें अग्नि देव से कहा की अपने बल और पराक्रम से इस तिनके को भस्म कर के बताइये.

अग्नि देव नें भी इस कार्य को पार लगाने में अपनी समस्त शक्ति झोंक दी. पर कुछ भी नहीं कर पाये. अंत में वह भी सिर झुकाये इन्द्र देव के पास लौट आए. इस तरह एक एक-कर के समस्त देवता तेजपुंज की चुनौती से परास्त हुए तब अंत में देव राज इन्द्र खुद मैदान में आए पर उन्हे भी सफलता प्राप्त ना हुई.
अंत में समस्त देव गण नें तेजपुंज से हार मान कर वहाँ उनकी आराधना करना शुरू कर दिया. तब तेजपुंज रूप में आई माँ दुर्गा में अपना वास्तविक रूप दिखाया और देवताओं को यह ज्ञान दिया की माँ शक्ति के आशीष से आप सब नें दानवों को परास्त किया है. तब देवताओं नें भी अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और अपना मिथ्या अभिमान त्याग दिया.

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