लखवी मामले में दुनिया को कैसे मुर्ख बना रहा है पाकिस्तान ?
लखवी मामले में दुनिया को कैसे मुर्ख बना रहा है पाकिस्तान ?
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रमजान में झूठ बोलना नापाक है,पर कुतर्कों से सच को छुपा लेना क्या पाक है ?

रमजान यानि इस्लामी अस्थाओं के लिहाज से मुक़द्दस माह, जिसमें झूठ बोलना अन्य दिनों में झूठ बोलने से बड़ा गुनाह होता है । पर शायद मज़हबी किताबों में यह नहीं लिखा है कि सच को छुपाना भी झूठ बोलने के बराबर है । इसलिए पाकिस्तान ने मुंबई धमाकों के मास्टर माइंड माने जाने वाले लखवी को बचाने के लिए, झूठ तो नहीं बोला पर कुतर्कों के द्वारा सच को छुपा लिया ।

एक ओर तो पीएम मोदी और पीएम नवाज शरीफ के बीच उफा में हुई मुलाक़ात में तो मियां शरीफ ने शराफत दिखाकर वादा किया कि वे मुंबई धमाकों के आरोपियों से संबन्धित केसों में कार्यवाही में तेजी लायेंगे । मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने यह भी वादा किया था कि इस केस के लिये जरूरी बन चुके साक्ष्य ‘अर्थात लखवी की आवाज के सेंपल’ भी भारत को उपलब्ध करवायेंगे । परन्तु बस इस मुलाक़ात के बाद ही पाकिस्तान के विदेश मामलों के सलहकार सरताज अजीज और सरकारी वकील (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) चौधरी अज़हर ने अलग ही सुर में बयान दिये । यानि हमारे साथ सरासर वादा-खिलाफी की गई, वह भी रमजान में ।

उनके सरकारी वकील चौधरी अज़हर का कहना है कि वे अब फिर से पाकिस्तानी कोर्ट में लखवी का वॉइस सेंपल लेने के लिए अपील नहीं करेंगे । चूंकि, 2011 में रावलपिंडी के न्यायालय ने इस तरह की अपील को खारिज कर दिया था, यह तर्क देकर कि किसी आरोपी की आवाज के नमूने लेने का पाकिस्तानी कानून में प्रावधान नहीं है । तब भी यह ‘एक कोर्ट द्वारा’ दिया गया तर्क नहीं ‘कुतर्क’ था कि किसी केस में कोई नये तरह का प्रमाण लेने की आवश्यकता हो तो भी पुराने कानून में उसका उल्लेख होना जरूरी है ।

किसी अपराधी की आवाज तो ऐसा महत्वपूर्ण साक्षी है कि जो बहुत-से अपराध संबंधी मामलों  में बहुत उपयोगी हो सकता है और जिसे दुनियाभर में एक विश्वसनीय साक्ष्य माना जाता है। तो यदि पाकिस्तान के कानून में 2011 में इससे संबन्धित प्रावधान नहीं था; तो इसका मतलब है कि पाक कोर्ट दुनिया को यह बता रही थी कि उनके कानून इतने पिछड़े हुए और त्रुटिपूर्ण है कि जिनमें इतने स्वभाविक प्रमाण का साक्ष्य के रूप में प्रावधान नहीं है । दूसरे वह यह भी बता रही थी कि पाक कोर्ट इतनी लकीर की फकीर है कि वह यदि कानून में मामूली ‘कॉमन सेंस’ से भी स्वीकार करने लायक कमजोरी हो तो उससे ऊपर उठकर संविधान के मूल सिद्धांतों पर आधारित फैसले नहीं ले सकती है और अन्य कोर्ट्स की तरह कानून की व्याख्या के जरिये ही किसी कमजोर कानून को बेहतर नहीं बना सकती है ।

...तो स्पष्ट है कि रावलपिंडी कोर्ट ने उस समय भी कानून की कमजोरी की आड़ लेकर लखवी को बचाया था ।....और अब तो फिर से हद हो गई है कि जब 2013 में पाकिस्तान में इससे संबन्धित नया कानून बन गया और जिसके तहत आरोपी की आवाज का सेंपल लिया जा सकता है, तो पाकिस्तान के पब्लिक प्रॉसिक्यूटर कह रहे हैं कि अब पाकिस्तान सरकार कोर्ट से इसकी अनुमति के लिए अपील नहीं करेगी । दूसरे शब्दों में जब अंगीठी जलाई थी, तब आटा-दाल नहीं था, अब जब आटा-दाल है तो बहुरानी को अंगीठी से परहेज हो गया है ।    

यानि, बहुत साफ है कि बे-बुनियाद बहानेबाजी के जरिये लखवी को बचाया जा रहा है । दुनिया के सामने राग अलापा जा रहा है कि उसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं है । लेकिन जिस तरीके से ठोस साक्ष्य मिल सकते है; उस तरीके का प्रयोग ही नहीं होने दिया जा रहा है । अर्थात कुतर्क, बहानेबाजी व अलग-अलग मुंह से अलग-अलग बातें करके मामला उलझाया जा रहा है । सच छुपाया जा रहा है, वह भी रमजान में। ‘साक्ष्य नहीं है’ का बहाना बनाकार पाकिस्तान का अजीज मित्र चीन भी सुरक्षा परिषद में उसका संरक्षक बना हुआ है ।  

देखा जाए तो, जब कोई बचाव पक्ष या किसी आरोपी को बचाने की इच्छा रखने वाले, इस तरह कुतर्कों का उपयोग करते हैं; तो उनकी चालाकियों से भी यही साबित होता है, कि चोर की दाड़ी में तिनका है । यानि साक्ष्य नहीं लेने देने की कोशिश भी तो एक साक्ष्य है ।    

हरिप्रकाश ‘विसन्त’

 

        

 

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