जानापाव कुटी में हुआ था भगवान परशुराम का जन्म
जानापाव कुटी में हुआ था भगवान परशुराम का जन्म
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इंदौर। महू तहसील के हासलपु गांव में ऊंचे पहाड़ पर घने जंगल के बीच स्थित है जानापाव नामक पहाड़ी। जानापाव पहाड़ी को ऋषि जमदग्नि की तपोभूमि और भगवान परशुराम की जन्म भूमि कहा जाता है। जानापाव में जन्म के बाद भगवान परशुराम शिक्षा प्राप्त करने कैलाश चले गए थे, जहां उन्हें भगवान शिव से शस्त्र-शास्त्र दोनों का ज्ञान प्राप्त हुआ। पौराणिक कथाओं के आधार पर मान्यता है कि जानापाव से 7 नदिया निकलती है जोकि, चंबल, गंभीर, सुमरिया, बीरम, चोरल, कारम और अंगरेड़ नामो से जानी जाती है, वहीं यह भी मान्यता है कि यह सभी नदिया तकरीबन 740 किलोमीटर बहकर नर्मदा नदी और चम्बल नदी में मिल जाती है।

प्रचलित कथाएं
भृगुवंशी ऋषि जमदग्नि तपस्वी थे, राजा प्रसेनजीत की पुत्री रेणुका से उनका विवाह हुआ था। ऋषि जमदग्नि और रेणुका के 5 पुत्र हुए, रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्र्ववानस और परशुराम। ऋषि जमदग्नि और रेणुका दोनों अपने पुत्रों के साथ जानापाव कुटी में निवास करते थे। रेणुका प्रतिदिन नदी पर स्नान करने जाए करती थी लेकिन एक दिन जब वह नदी पर स्नान कारण गई उस दौरान नदी पर राजा चित्ररथ भी स्नान करने आए थे। राजा चित्ररथ को देख रेणुका उन पर मोहित हो गई। वहीं रेणुका के इस आचरण को ऋषि जमदग्नि ने अपने योगबल से जान लिया।

पत्नी का आचरण जानने के बाद ऋषि जमदग्नि को बेहद क्रोध आया। क्रोधित ऋषि ने अपने पुत्रों को आदेश दिया की अपनी माता का शीश काट कर लाए, लेकिन अपने पिता के इस आदेश का पालन करने से चारों पुत्रों ने माना कर दिया वहीं परशुराम ने अपने पिता का आदेश मानते हुए अपनी ही माता का वध कर दिया। ऋषि के आदेश का पालन न करने पर अपने चारों पुत्रों से क्रोधित होकर उन्हें चेतना शून्य होने का श्राप दे दिया, साथ ही आदेश का पालन करने पर परशुराम से प्रसन्न को कर उन्हें 3 वरदान मांगने को कहा।

अपने पिता के कहने पर भगवान परशुराम ने 3 वरदान मांगे। उन्होंने पहले वरदान में मांगा कि माता रेणुका को पुनः जीवित कर दे लेकिन वध का प्रसंग उन्हें याद न रहे। दूसरा वरदान उन्होंने मांगा कि चारों भाइयो को फिर से उनकी चेतना लौटा दे। तीसरा वरदान उन्होंने अपने स्वामी के लिए मांगते हुए कहा कि किसी भी युद्ध में या किसी क्षत्रु से वे कभी पराजित न हो और उनकी आयु लंबी हो। अपने पुत्र के द्वारा मांगे गए यह वरदान सुनकर ऋषि जमदग्नि गदगद हो गए और परशुराम के द्वारा तीनों मांगे हुए वरदान पूर्ण हो ऐसा आर्शीवाद दिया।

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