जाने नटराज की अलग अलग मुद्राओ का रहस्य
जाने नटराज की अलग अलग मुद्राओ का रहस्य
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नटराज शिव की प्राचीन मूर्ति में उन्हें नृत्य की अवस्था में दिखाया गया है जिसमे वे अग्नि के घेरे से घिरे हुए है तथा उन्होंने अपने एक पाँव से एक बोन को दबा रखा तथा उनका दुसरा पाँव नृत मुद्रा में ऊपर की और उठा है. उन्होंने अपने दाहिने हाथ जो की ऊपर की ओर उठा है, से एक डमरू पकड़ रखा है . डमरू के जो आवाज है वो सृजन का प्रतीक है. इस प्रकार यह शिवजी की सृजनात्मक शक्ति का द्योतक है.

1-ऊपर की ओर उठे नटराज जी के दूसरे हाथ में अग्नि है जो की विनाश का प्रतीक है. इस प्रकार नटराज की प्रतिमा यह प्रदर्शित करती है की शिवजी अपने एक हाथ से संसार का सृजन करते है और दूसरे हाथ से इसका विलय.

2-नटराज का दुसरा उठा हुआ दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है जो की हमारी सारी बुराइयों से रक्षा करता है.

3-उनका उठा हुआ पाँव मोक्ष का द्योतक है, तथा उनका बाया हाथ उनके उठे हुए पैर की ओर इंगित करता है जिसका अभिप्राय है की शिव मोक्ष के मार्ग का सुझाव करते है इसका एक अर्थ यह भी है की शिव के चरणों में मोक्ष है.

4-नटराज के चारो ओर से उठ रही अग्नि सम्पूर्ण सृष्टि को प्रदर्शित करती है . नटराज के शरीर के ऊपर लहराते सर्प शक्ति कुंडलिनी शक्ति के द्योतक है.

5-नटराज के सम्पूर्ण आकृति का आकार ॐ के रूप जैसा दिखता है. यह इस बात को भी दिखाता है की भगवान शिव ॐ में ही निहित है.

6-नटराज की लयबद्ध नृत्यरत स्थिति स्वयं में ब्रहाण्ड की लयबद्धता की उद्घोषणा करती है. अपनी इस स्थिति के द्वारा नटराज ये सिद्ध करते हैं बिना गति के कोई भी जीवन नहीं और जीवन के लिए लयबद्धता अनिवार्य है.

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