जानिए खाटूश्यामजी में ही क्यों पूजे जाते हैं बर्बरीक?
जानिए खाटूश्यामजी में ही क्यों पूजे जाते हैं बर्बरीक?
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महाभारत (Mahabharata) के अनुसार, भगवान खाटूश्याम (Lord Khatushyam) का मूल नाम बर्बरीक (Barbarik) है। कहा जाता है धर्म की जीत सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने दान में उनका शीश मांग लिया था, जिसे उन्होंने हंसते-हंसते दे दिया। उस दौरान खुश होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में भक्त तुम्हें मेरे नाम से ही पुजेंगे। आप सभी को बता दें कि खाटू ग्राम में मंदिर होने से इन्हें खाटूश्याम कहते हैं। आप सभी जानते ही होंगे देश में और भी स्थानों पर भगवान खाटूश्याम के मंदिर हैं, लेकिन मुख्य स्थान यही है। जी हाँ और इस स्थान से एक कथा भी जुड़ी है, जो इस प्रकार है।

खाटूश्यामजी में ही क्यों पूजे जाते हैं बर्बरीक?- प्रचलित कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान कटा बर्बरीक का शीश राजस्थान के सीकर जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित छोटे से कस्बे खाटू में दफनाया गया। वहीं एक गाय उस स्थान पर आकर रोजाना अपने स्तनों से दूध की धारा स्वत: ही बहाती थी। ऐसे में लोगों ने जब ये चमत्कार देखा तो इस जगह खुदाई की गई, जिससे यहां एक शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया।

वहीं एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। उसके बाद उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया। कहा जाता है कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया और इस दिन बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

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