शिक्षा के केंद्र बने राजनीति के हाथों की कठपुतली
शिक्षा के केंद्र बने राजनीति के हाथों की कठपुतली
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भारत के वे विश्वविद्यालय जो कभी शास्त्रों के अध्ययन का केंद्र हुआ करते थे। जहां चीन, कंबोडिया और न जाने कहां - कहां से शिक्षार्थी विद्या ग्रहण करने आया करते थे अब वे राजनीतिक का केंद्र बनते जा रहे हैं। राजनीति का केंद्र बनना एक अच्छी और सौहार्दपूर्ण बात हो सकती है लेकिन यह राजनीति अखंड भारत को खंडित करने में लगी है। जी हां, वह देश जो वर्षों से भारत में आतंकवाद को प्रेरित करने के लिए जाना जाता है। उस देश के समर्थन के नारे लगाए गए।

वह भी भारत की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के प्रमुख विश्वविद्यालय में। धर्म के नाम पर विद्यार्थियों को बांट दिया गया। अब तक जो विद्यार्थी फिर भी दिल है हिंदूस्तानी गाता था वह अब ऐसे नारे लगाने लगा है जो सीधे तौर पर एक अलग राष्ट्र की मांग करने वाले हैं। भारत की राजनीति ने एक बार फिर सत्ता के लिए दिलों को बांट दिया है। अब एक विशेष राजनीतिक दल पर अपनी राजनीतिक रोटियां सैंकने के लिए देशद्रोह का अप्रत्यक्ष समर्थन करने के आरोपों से झेलना पड़ रहा है।

भारत फिर से बंटता हुआ नज़र आ रहा है हालांकि आज भी इसका हर क्षेत्र एक है और अखंडित है लेकिन यहां के युवाओं के मन बंट रहे हैं। स्वार्थ की राजनीति के चलते युवाओं को बहकाया जा रहा है। एक सांसद द्वारा सजा पा चुके आतंकी के लिए 'जी' जैसे सम्मानसूचक शब्दों के प्रयोग पर राजनीति में सवाल उठ रहे हैं। युवाओं को दिग्भ्रमित किया जा रहा है। वे भारत विरोधी नारे लगाने और पाकिस्तान के ही साथ कश्मीर मसले पर पाकिस्तान के रूख संबंधी विचारों का समर्थन करने लगे हैं।

जिस तरह की राजनैतिक अस्थिरता विश्विद्यालयों के माध्यम से फैलाई जा रही है उसे ठीक नहीं माना जा रहा है। शिक्षा के केंद्रों में इस तरह की संकुचित मानसिकता को काफी विस्फोटक माना जा रहा है। यह देश की एकता के लिए एक बड़ा खतरा हो सकती है। तुष्टिकरण की राजनीति में पार्टियां देश को कमजोर करने में लगी हैं।

ऐसे में कश्मीर हो या कन्याकुमारी भारत माता एक हमारी जैसे नारों का क्या महत्व रह गया है। वे विश्वविद्यालय जो विचारों के केंद्र होते हैं, उन्हें विस्फोटक राजनीति का शस्त्र बनाया जा रहा है। जिस तरह से भारत की जड़ें काटी जा रही हैं वह लोकतंत्र के एक बुरे अध्याय की ओर इशारा कर रही है इससे लोकतंत्र और देश की अखंडता ही खतरे में पड़ रही है। 

'लव गडकरी'

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