बड़ा खुलासा : नेहरू नहीं चाहते थे राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनें
बड़ा खुलासा : नेहरू नहीं चाहते थे राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनें
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नई दिल्ली : देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू नहीं चाहते थे कि राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनें। उन्हें राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए उन्होंने झूठ तक का सहारा लिया था। यह दावा एक नई किताब में किया गया है, जिसे पूर्व खुफिया अधिकारी आर.एन.पी. सिंह ने लिखी है। 'नेहरू : अ ट्रबल्ड लेगेसी' नामक इस पुस्तक में सिंह ने दावा किया है, "नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए कई प्रयास किए और इस क्रम में उन्होंने झूठ भी बोला।"

इस पुस्तक का प्रकाशन विज्डम ट्री ने किया है, जिसमें महात्मा गांधी, नेहरू , पटेल और अन्य के पत्र भी शामिल किए गए हैं, सिंह ने आधिकारिक रिकार्ड के हवाले से लिखा है कि 10 सितंबर, 1949 को नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को पत्र लिखकर कहा कि उन्होंने (नेहरू) तथा सरदार पटेल ने फैसला किया है कि सी.राजगोपालाचारी को भारत का पहला राष्ट्रपति बनाना सबसे बेहतर होगा, नेहरू ने जिस तरह से यह पत्र लिखा था, उससे राजेंद्र प्रसाद को घोर निराशा हुई और उन्होंने पत्र की एक प्रति सरदार पटेल को भेजवाई, जो उस वक्त बम्बई (अब मुंबई) में थे, पटेल यह पत्र पढ़ कर हैरान थे, क्योंकि उनकी इस बारे में नेहरू से कोई चर्चा नहीं हुई थी कि राजाजी (राजगोपालाचारी) या राजेंद्र प्रसाद में से किसे राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए। न ही उन्होंने नेहरू के साथ मिलकर यह तय किया था कि राजाजी राष्ट्रपति पद के लिए उनकी पसंद के उम्मीदवार होंगे।

इसके बाद राजेंद्र प्रसाद ने 11 सितंबर को नेहरू को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि पार्टी में उनकी जो स्थिति रही है, उसे देखते हुए वह बेहतर व्यवहार के पात्र हैं, पुस्तक के अनुसार, नेहरू को जब यह पत्र मिला तो उन्हें लगा कि उनका झूठ पकड़ा गया। अपनी फजीहत कराने के बदले उन्होंने अपनी गलती स्वीकार करने का निर्णय लिया, पुस्तक के अनुसार, नेहरू यह भी नहीं चाहते थे कि हालात उनके नियंत्रण से बाहर हों और इसलिए उन्होंने इस संबंध में आधी रात तक जाग कर प्रसाद को जवाब लिखा, पुस्तक के अनुसार, राजेंद्र प्रसाद का पत्र पढ़कर नेहरू बहुत तनाव में थे। उन्हें लगता था कि राजेंद्र प्रसाद ने उनके और पटेल के बारे में गलत राय बना ली है, राजेंद्र प्रसाद को भेजे पत्र में उन्होंने अपनी गलती स्वीकार करते हुए लिखा, "मैंने जो कुछ भी आपको लिखा, उससे पटेल का कुछ लेना-देना नहीं है। मैंने पटेल से जिक्र किए बिना और उनसे विचार-विमर्श किए बिना खुद ही सारी चीजें लिखी थीं। मैंने आपको जो पत्र लिखा है, उस बारे में बल्लभभाई को कोई जानकारी नहीं है।"

पुस्तक के अनुसार, नेहरू को भान हो गया था कि इस पूरे प्रकरण ने पटेल और राजेंद्र प्रसाद के समक्ष उनकी पोल खोल दी है, अपनी फजीहत से बचने के लिए उन्होंने सरदार पटेल को भी पत्र लिखा और उसमें राजेंद्र प्रसाद के पत्र में लिखी गई बातों और लहजे पर हैरानी जताई, पुस्तक के मुताबिक, नेहरू ने फिर पूरे मामले को बड़ी चालाकी से सरदार पटेल के पाले में फेंक दी। पटेल को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा, "अब यह आप पर है कि इस स्थिति से कैसे निपटें।"

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