नमक हो या आटा, खूब चला टाटा
नमक हो या आटा, खूब चला टाटा
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जो उद्योग घराना देश की पहचान बन गया हो। जिसके विज्ञापन में ही यह कहा जाता हो कि मैंने देश का नमक खाया है। जो ऐसा ब्रांड बन गया हो जो देश में आत्मनिर्भरता की मिसाल रहा हो यही नहीं उद्योग के साथ शहरों को संपन्न बनाने में, विरासतों को संवारने में, शानदार ईमारतें बनाने में और उद्योग के साथ समाजसेवा और युवाओं को जागृत कर आत्मनिर्भरता की सीख देने में यदि कोई उद्योग घराना है तो वह है टाटा उद्योग समूह। भारत में औद्योगिक क्रांति के ही साथ जब काॅटन से स्टील इंडस्ट्री की स्थापना कर भारत को आत्मनिर्भर बनाकर भारत का लौहा दुनिया में मनवाने का कार्य यदि किसी ने किया था तो उसका नाम था जमशेदजी नसरवानजी टाटा।

आज यह समूह न केवल स्टील इंडस्ट्री में कार्य कर रहा है बल्कि दूरसंचार, आईटी आदि माध्यमों से देश में प्रगति का अलख जगाया है। टाटा उद्योग समूह अब ऐसा औद्योगिक घराना बन गया है जो नमक जैसी महत्वपूर्ण सामग्री का उत्पादन करता है तो बसों और भारी ट्रकों का उत्पादन कर बड़े उद्योग का सृजन करता है। इस समूह की प्रगति की नींव रखने वाले जमशेदजी टाटा का जन्म गुजरात के नवसारी में 3 मार्च 1839 को हुआ था।

उन्होंने 1853 को उन्होंने एलफिंस्टन इंस्टीट्युट, मुंबई में दाखिला लिया। इसका बाद वे यहां से ग्रीन स्काॅलर के तौर पर उत्तीर्ण हुए। उन्होंने अपने पिता नसरवानजी के संस्थान में कार्य करना प्रारंभ कर दिया। पहले उन्होंने अपने पिता की ही कंपनी में संयुक्त मैनेजर के तौर पर कार्य संभाला इसके बाद उन्होंने कंपनी की ब्रांच हांगकांग में खोली। 1867 में जमशेदजी टाटा ने मैनचेस्टर में थाॅमस कारलिल का भाषण भी सुना।

इस भाषण में जब यह कहा गया कि जिस देश के पास लोहा होगा उसका ही सोने पर नियंत्रण हो सकता है तभी उन्होंने आयरन को महत्व देने की ठान ली। उन्होंने वर्ष 1869 में काॅटन मिल खोलीफ। मिल खोलने के साथ ही उन्होंने लंकाशायर में काॅटन उद्योग पर पढ़ाई की। इसके बाद वे आगे बढ़ते गए। मुंबई में देश की पहली ज्वाईंट स्टाॅक कंपनी के तौर पर स्पिनिंग, वीविंग और मैन्युफैक्चरिंग कंपनी भी खोली। उन्होंने 1 जनवरी को एम्प्रेस मिल स्थापित की। टाटा केवल उद्योग तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि 1885 में भारत की स्वाधीनता में अहम योगदान देने वाली कांग्रेस की स्थापना में भी वे शामिल हुए थे।

1886 में टाटा ने स्वदेशी आंदोलन को गति दी और धरमसी मिल को खरीदा यह मिल घाटे में थी और बीमार उद्योग माना जा रहा था। मगर इस मिल को खरीदकर टाटा ने 8 वर्ष में ही स्वदेशी कपड़ों का बड़ा बाजार देश में तैयार कर दिया। जमशेदजी ने दोराबजी टाटा और आरडी टाटा के साथ भागीदारी की । जिसे टाटा एंड संस का नाम दिया गया। 1892 में जेएन टाटा एंडाॅमेंट स्कीम की शुरूआत उन्होंने 25 लाख रूपए की राशि से की।

1898 में उन्होंने मुंबई में होटल ताज की नींव रखी। आपोलो रिक्लेमेशन ग्राउंड में इसकी आधारशिला रखी गई। हालांकि टाटा की कर्मस्थली झारखंड रही। उन्होंने उस जमशेदपुर में स्टील की कंपनी स्थापित की जिसे कालीमाटी कहा जाता था। बाद में उन्होंने अपने कारोबार को विस्तार दिया। जमशेदजी के बाद उनके परिवार के सदस्यों, कर्मचारियों और सहयोगियों ने इस उद्योग समूह को 665185 करोड़ के कारोबार में बदल दिया। वर्तमान में यह कारोबार 11 महाद्वीप के 100 देशों में फैला हुआ है। जमशेदजी टाटा का निधन 19 मई 1904 में हो गया। जमशेदजी टाटा ने जर्मनी के बैड न्यूहाईम में अंतिम सांसें ली। 

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