कराहती आत्मा पर चोट करने का नाम टू फिंगर टेस्ट
कराहती आत्मा पर चोट करने का नाम टू फिंगर टेस्ट
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इन दिनों महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे लाए जाने की बात की जा रही है। महिला अधिकारों को पुरजोर तरीके से उठाया जा रहा है। साथ ही महिलाओं को किसी पुरूष से कमतर भी नहीं माना जाता है।महिलाओं के लिए कितने ही नियम कायदे बन गए हैं। मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात की तरह नज़र आता है। भारत के मैट्रो से लेकर गांव - गांव तक महिला बलात्कार के दंश को झेलने पर मजबूर है।यहां आकर महिलाओं को आगे लाने की सारी तस्वीर बेईमानी साबित होने लगती है। हालांकि आधुनिक दौर में जिस तरह से चारित्रिक पतन हो रहा है इस दौर महिलाओं की महत्वाकांक्षा भी बढ़ने लगी है, ऐसे में महिलाओं द्वारा लोगों को झूठे आरोपों में फंसाने के मामले भी बड़े पैमाने पर सामने आए हैं लेकिन सबसे बड़ा और जीवंत सवाल है कि दर्द से छटपटाती, कराहती और बदहवास महिला को टू फिंगर टेस्ट के लिए तैयार करना।

यह कहीं से भी जायज़ नहीं लगता है। हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा बलात्कार के मामलों के परीक्षण के लिए इस तरह की जांचों की अनुमति दी गई है। इस जांच के दौरान महिला की योनि में चिकित्सक द्वारा दो अंगुलियां डालकर बलात्कार होने की जांच की जाएगी। मगर सवाल यह है कि बलात्कार की घटना होने के बाद जो महिला दर्द से कराह रही हो उसके गुप्तांग में इस तरह अंगुली डालकर उसे दर्द को दुगना करना कहां तक जायज़ है।बलात्कार के बाद महिला केवल शरीर से ही नहीं रोती उसका मन भी टूट जाता है।

वह घटनाक्रम तो पीछे छूट जाता है लेकिन समाज के सवाल उसे घूरते रहते हैं। इन विकट स्थितियों से जूझने में उसे लंबा समय लग जाता है। ऐसे में उसे टू फिंगर टेस्ट के माध्यम जांचा जाना उसके घावों पर नमक छिड़कने जैसा है। समाज में महिला के कौमार्य को महत्व दिया जाता है, जिससे बलात्कार की भयावहता उसे निचोड़ती चली जाती है लेकिन इससे उबरने में उसकी प्रबल आत्मशक्ति और परिवार की सांत्वना जरूर उसे बल देती है।

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