दुनिया को जाकिर के भय की है जरूरत, या पीड़ित से प्रेम की हो पहल !
दुनिया को जाकिर के भय की है जरूरत, या पीड़ित से प्रेम की हो पहल !
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विश्वभर में इस्लामिक आतंकवाद भयावहता फैला रहा है. आतंक का असर इस्लामिक देशों में भी हो रहा है. इस्लामिक देशों में ही रमजान के पवित्र माह का ध्यान न रखते हुए आतंकी बम धमाके करते हैं और गोलीबारी करते हुए अपनी कट्टरता दिखाते हैं. हालांकि आतंकियों को लेकर इस्लामिक देश भी विरोध करने में लगे हैं और वे सभी यह सोचने में लगे हैं कि आखिर आतंक का समाधान कैसे हो. हालांकि विश्वभर में अपने वक्तव्य से अपना प्रभाव फैलाने वाले इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक डाॅक्टर जाकिर हुसैन एक प्रचारक, विचारक और धार्मिक व्याख्याकार के तौर पर विवादों में फंस गए हैं।

दरअसल उन्होंने इस्लाम के ही साथ हिंदू शब्द की व्याख्या की थी और फिर हिंदू धर्म की कुछ मान्यताओं का विरोध किया. उनके इन विचारों को आध्यात्मिक गुरू और आर्ट आॅफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने अपनी एक काॅन्फ्रेंस में नकार दिया और अपने तर्क भी दिए, जाकिर के विचार दुनिया में आतंक का साम्राज्य भी खड़ा कर रहे हैं. हाल ही में यह बात सामने आई है कि बांग्लादेश में हुए हमले के हमलावर जाकिर के विचारों से प्रेरित थे हालांकि इतने में ही एक धार्मिक गुरू या प्रस्तोता को गलत मानना सही नहीं है।

हो सकता है वह आपको कोई सकारात्मक विचार देना चाहता हो मगर उसे आपने नकारात्मकतौर पर लिया. दूसरी ओर इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ाने के लिए  हर मुसलमान दोषी नहीं है. ऐसे में जाकिर नाईक पर सीधे तौर पर आरोप लगाना ठीक नहीं. हालांकि उन्होंने ओसामा बिन लादेन को भी आतंकी नहीं माना था. ओसामा-बिन-लादेन आतंकी था यह अमेरिका के 9/11 हमले से ही सिद्ध हो गया था।

जाकिर ने हिंदू धर्म की मान्यताओं को लेकर जिस तरह से विरोध किया था उसे नापसंद किया गया. दरअसल जाकिर यहां पर अपने विषय से अलग हट गए थे. वे व्याख्या करते समय यह भूल गए थे कि वेदों में ईश्वर के साकार और निराकार स्वरूप को दर्शाया गया है. ऐसे में उन्होंने केवल मूर्तिपूजा का विरोध ही किया था और उसकी तुलना इस्लाम से की थी. यूं तो भारत में सभी को अपने अनुसार धर्म का आचरण करने की स्वतंत्रता है।

ऐसे में सभी अपनी-अपनी मान्यताओं के तहत धर्म को मान सकते हैं. किसी धर्म विशेष का विरोध करने की जाकिर की मंशा जताती है कि वे अपने धर्म प्रचार की व्याख्या से अलग हटकर कुछ कह रहे हैं. विश्वपटल पर यह इस्लामिक राष्ट्रों की लिए भी घातक हो सकता है. आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने एक कार्यक्रम में उनके विचारों को लेकर अपना तर्क को सामने रखा. जिसमें उन्होंने कई मान्यताओं की बात कही. आखिर जाकिर एक धर्म से दूसरे धर्म की असंगत तुलना कर रहे हैं तो इससे गलत कुछ नहीं।

सभी धर्मों का अपना-महत्व है और उसके मानने वाले हैं. जाकिर मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं मगर इस्लाम में भी पीर, पैगंबरों की मजार, मस्जिद पर जाकर लोग इबादत करते हैं. यदि ईश्वर को वे मूर्ति पूजा से अलग मानते हैं तो फिर ईश्वर का स्वरूप निराकार हो सकता है. मगर वे भी साकार स्वरूप की व्याख्या करते हैं और इसे मस्जिद व मजार से जोड़ते हैं ऐसे में हिंदू गुरूओं की मान्यताओं का समर्थन हो जाता है।

वस्तुतः हिंदू धर्म में भी समाधि पूजन का महत्व है. नाथ संप्रदाय के यागियों की तो समाधियों का ही निर्माण होता है और उसी का पूजन होता है. ऐसे में पीर-पैगंबर वाली अवधारणा को समर्थन मिलता है. मगर यहां पर मूर्ति पूजन किया जाना भी गलत नहीं है. किसी आकार स्वरूप में ईश्वर को ढालना उसे उस आकार में प्राण प्रतिष्ठित करना और फिर उसका पूजन करना भी गलत नहीं है. ऐसे में दोनों तरह की मान्यताओं का बल मिलता है. जिसमें ईश्वर का निराकार और साकार होना शामिल है. जाकिर के तर्कों से से आतंक बढ़ सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है।

एक बार तो उन्होंने ही कहा कि वे मुसलमान को आतंकी होना चाहिए. आतंकी का अर्थ ऐसा आदमी है जो भय फैलाए. एक धर्म गुरू यदि भय फैलाने की बात कहे तो फिर यह मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा. कई मुस्लिम भी जाकिर नाईक के बयानों से सहमत नहीं हैं. ऐसे में जाकिर के खतरनाम विज़न को लेकर तर्क-कुतर्क की स्थिति है, अब इसे रोकने की पहल की जा रही है. मगर इस पर भी राजनीति हावी है। हालांकि किसी भी मुसलमान को आतंकवाद को लेकर शक की नज़र से देखा जाना ठीक नहीं है लेकिन यह भी सही नहीं है कि उसे भय फैलाने वाला दूत ही बना दिया जाए।

आतंकी से भी मानवता की जा सकती है और उसे आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार किया जा सकता है. आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ऐसे कई आतंकियों को मानवता के रास्ते पर लाने में सफल रहे हैं. यहां उनका यह कहना सही नज़र आता है कि प्रत्येक पीड़ित में ही अपराधी छुपा होता है. उसे बदला जा सकता है. ऐसे में भय दिखाकर किसी भी तरह का न्याय नहीं किया जा सकता है. भय से केवल वैमनस्य उत्पन्न होता है जो मानवता के लिए खतरा हो सकता है।

'लव गडकरी'

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