बर्खास्त हुए इशरत जहां एनकाउंटर केस की जांच करने वाले IPS, पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
बर्खास्त हुए इशरत जहां एनकाउंटर केस की जांच करने वाले IPS, पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
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इशरत जहां कथित फेक एनकाउंटर की जांच से जुड़े पूर्व आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा ने अपने खिलाफ हुई बर्खास्तगी की कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली है। जी दरअसल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीती 30 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट को यह बताया था कि उसने सतीश चंद्र वर्मा को पुलिस सेवा से निकाल दिया है। जी दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट ने ही सरकार को सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ डिसिप्लिनरी प्रोसिडिंग आगे बढ़ाने का आदेश दिया था। साल 1986 बैच के आईपीएस रहे सतीश ने इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

सामने आने वाली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सतीश चंद्र वर्मा को विभागीय जांच के आधार पर सेवा से बर्खास्त करने का फैसला लिया गया है। जी दरअसल वह इशरत जहां मामले की जांच के लिए बनाई गई एसआईटी में शामिल थे। इसके अलावा मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि पूर्व आईपीएस की बर्खास्तगी की वजह इशरत जहां एनकाउंटर मामले में मीडिया में उनकी बयानबाजी है। उन पर आरोप था कि उनकी बयानबाजी से राज्य और केंद्र सरकार की कार्रवाई की आलोचना हुई। सामने आने वाली एक रिपोर्ट के मुताबिक सतीश वर्मा ने साल 2016 में कहा था कि इशरत जहां का एनकाउंटर पहले से तय योजना के तहत की गई ‘हत्या’ थी।

सतीश वर्मा तब शिलॉन्ग में नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (NEEPCO) में चीफ विजिलेंस ऑफिसर थे। सामने आने वाली एक रिपोर्ट के मुताबिक सतीश वर्मा के खिलाफ पिछले साल सितंबर में एक चार्जशीट जारी की गई थी। जी हाँ और इसको लेकर उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था। हालाँकि हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ फैसला देते हुए डिसिप्लिनरी अथॉरिटी को अपनी प्रोसिडिंग को आगे बढ़ाने की मंजूरी दे दी थी। जी दरअसल आदेश में कहा था कि वर्मा के खिलाफ तुरंत कोई कदम ना उठाया जाए। आपको बता दें कि कुछ समय पहले केंद्र की ओर से कोर्ट को बताया गया कि वर्मा के खिलाफ डिसिप्लिनरी प्रोसिडिंग पूरी हो गई है और अब उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया जाए। इसके बाद बीती 30 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट की एक डिविजन बेंच ने फाइनल ऑर्डर को मंजूरी दे दी। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर फाइनल ऑर्डर वर्मा के लिए किसी अन्य प्रकार से नुकसानदेह होता है तो इसे कोर्ट की मंजूरी के बिना लागू नहीं किया जाएगा।

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