बिहार चुनाव : कौन बनेगा शिवहर का तारणहार?
बिहार चुनाव : कौन बनेगा शिवहर का तारणहार?
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शिवहर: बिहार विधानसभा चुनाव में शिवहर का संग्राम दिलचस्प है। सीतामढ़ी जिले से अलग होकर शिवहर जिला तो बन गया, लेकिन अब तक यह क्षेत्र शहरी स्वरूप नहीं ले पाया है। पिछले कई चुनावों में जातीय समीकरण ही यहां के चुनाव परिणाम को प्रभावित करते रहे हैं। इस बार कुछ मतदाता विकास की बात भी करते हैं। अब देखना है, शिवहर का तारणहार कौन बनता है।

इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणात्मक माना जा रहा है, लेकिन निर्दलीय और पूर्व विधायक ठाकुर रत्नाकर राणा इस लड़ाई को चतुष्कोणीय बनाने में जुटे हुए हैं। सत्तारूढ़ महागठबंधन ने निर्वतमान जद (यू) विधायक मोहम्मद सर्फुद्दीन को एक बार फिर मैदान में उतारा है तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के उम्मीदवार पर भरोसा जताया है। हम ने पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को यहां से प्रत्याशी बनाया है।

पूर्व मंत्री और 25 वर्षो से ज्यादा समय तक विधानसभा में शिवहर का प्रतिनिधित्व करने वाले दिग्गज नेता रघुनाथ झा के बेटे अजीत झा राजद के टिकट के दावेदार थे, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह सीट जद (यू) के लिए रखी। इसके बाद रघुनाथ झा राजद से बगावत कर समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल हो गए। अब उनके बेटे अजीत झा यहां सपा के उम्मीदवार हैं। उन्हें बहुजन समाज पर्टी (बसपा) के मोहम्मद इमामुद्दीन भी टक्कर दे रहे हैं।

सभी नेता ताबड़तोड़ सभाएं करने से लेकर मतदाताओं के चौखट तक पहुंच रहे हैं, लेकिन मतदाता अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं, मगर अपनी समस्याओं का बखान खुलकर कर रहे हैं। जिला परिषद के सदस्य रहे अजब लाल चौधरी कहते हैं, "नेताओं की बात पुल-पुलिया व सड़क तक ही रह जाती है, जबकि जिले की सबसे बड़ी समस्या एक डिग्री कॉलेज का नहीं होना है।" शिवहर का प्रवेशद्वार 'जीरो माइल' को माना जाता है। यहीं से एक रास्ता सीतामढ़ी, दूसरा मुजफ्फरपुर और तीसरा मोतिहारी की ओर जाता है।

जीरो माइल पर मिले एक व्यक्ति शिवराज चौधरी बड़े ही मायूस होकर बोल पड़ते हैं, "शिवहर जिला बना, लेकिन इससे किसी का कोई भला नहीं हो रहा है। हम लोग तो परेशान हो रहे हैं। अब शहर से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग बन रहा है। रास्ते में पड़नेवाले घरों-झोपड़ियों को तोड़ा जाएगा।" वैसे कई समस्याओं को झेल रहे शिवहर में कौन जीतेगा, इसका आकलन आसान नहीं है। निर्दलीय ठाकुर रत्नाकर राणा भाजपा के टिकट के दावेदार थे, लेकिन आखिरी मौके पर यह सीट हम को मिल गई।

पिछले विधानसभा चुनाव में इस राजपूत, ब्राह्मण और मुसलमान बहुल विधानसभा क्षेत्र में जद (यू) के माहेम्मद मोहम्मद सर्फुद्दीन ने बसपा उम्मीदवार प्रतिमा देवी को 1,600 से ज्यादा मतों से हराया था। शिवहर के वरिष्ठ पत्रकार हरिकांत शिवहर के बारे में बताते हैं कि मतदाता भले ही अभी स्थानीय समस्याओं की बात कर रहे हों, लेकिन मतदान जातीय आधार पर ही होगा।

उन्होंने कहा कि इस चुनाव में मुस्लिम और यादव वोट ज्यादातर जद (यू) के खाते में जाने की उम्मीद है, जबकि राजपूत का वोट तीन खेमे में बंटने की आशंका है। लवली और रत्नाकर को राजपूतों का वोट तो मिलेगा ही, अजीत झा भी राजपूत वोट बैंक में सेंध लगाएंगे। ब्राह्मण वोट अजीत झा के खाते में जाना तय है। वैसे बसपा उम्मीदवार इमामुद्दीन भी मुस्लिम और दलित वोटों में सेंधमारी करने के प्रयास में हैं।

यह भी नहीं भूला जा सकता कि शिवहर में बसपा का अपना एक मजबूत वोट बैंक है। ऐसे में मुकाबला कड़ा ही नहीं, दिलचस्प भी है। शिवहर से कुल 11 प्रत्याशी चुनावी समर में भाग्य आजमा रहे हैं। शिवहर को जिला बनाने का श्रेय रघुनाथ झा को जाता है। लवली आनंद पिछला लोकसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़कर हार गई थीं।

शिवहर के एक छात्र मयंक कुमार कहते हैं कि यह जिला न रेल लाइन से जुड़ा है और न ही यहां पर एक डिग्री कालेज है। नवोदय विद्यालय का अपना भवन नहीं है। यहां किस विकास की बात करते हैं? इस क्षेत्र में एक नवंबर को मतदान होना है। बहरहाल, लोगों में नेताओं के प्रति रोष और क्षेत्र का विकास नहीं होने का क्षोभ जरूर नजर आता है परंतु आठ नवंबर को मतगणना के दिन ही पता चल पाएगा कि शिवहर को समस्याओं के मकड़जाल से निकालने के जिम्मेदारी मतदाता किसे सौंपते हैं।

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