'हिंदुत्व और यहूदीवाद को उखाड़ फेंको..', भारत में जहर उगल गया 'हमास' का आतंकी, क्या कर रही थी सरकार ?
'हिंदुत्व और यहूदीवाद को उखाड़ फेंको..', भारत में जहर उगल गया 'हमास' का आतंकी, क्या कर रही थी सरकार ?
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कोच्चि: केरल के मल्लापुरम में फिलिस्तीन समर्थक रैली में फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास के नेता खालिद मशाल की ऑनलाइन भागीदारी ने बड़े विवाद को जन्म दे दिया है, राजनीतिक नेताओं ने इस मामले पर अपनी चिंताएं और राय व्यक्त की हैं।

भाजपा ने की आलोचना:-

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने इस घटना की आलोचना की और इसे पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली सरकार की विफलता बताया है। विजयवर्गीय ने कहा कि, यहां (केरल में) 'हिंदुत्व' को चुनौती देना गंभीर चिंता का विषय है और मैं राज्य और केंद्र सरकार से इसे गंभीरता से लेने का अनुरोध करता हूं। ऐसे लोगों को बचाने वाले 'घमंडिया' (INDIA) गठबंधन को देश की जनता जवाब देगी।'

 

वहीं, भाजपा नेता शहजाद पूनावाला ने इस घटना की निंदा करते हुए सवाल किया कि क्या INDI गठबंधन का हिस्सा कांग्रेस पार्टी भी इसकी निंदा करेगी। पूनावाला ने पुछा कि, इजराइल के सैकड़ों निर्दोषों की हत्या करने वाले हमास के आतंकियों को समर्थन क्यों दिया जा रहा है ? उन्होंने आतंकवाद से जुड़े संगठनों को मंच देने पर निराशा व्यक्त की और तर्क दिया कि वोट बैंक की राजनीति के नाम पर आतंकवादियों को अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। पूनावाला ने कहा कि, फिलिस्तीन की आड़ में नेताओं द्वारा 'हमास' का समर्थन किया जा रहा है। 

दुष्यन्त गौतम का रुख:-

एक अन्य भाजपा नेता, दुष्यंत गौतम ने इस कार्यक्रम में खालिद मशाल की भागीदारी को "राष्ट्र-विरोधी गतिविधि" माना और केरल में CPIM के नेतृत्व वाली सरकार से ऐसी गतिविधियों को समाप्त करने का आह्वान किया। उन्होंने विपक्षी गठबंधन के सदस्यों पर सनातन धर्म और हिंदू धर्म को अपमानित करने का प्रयास करने का आरोप लगाया। 

कार्यक्रम और उसके आयोजक:-

बता दें कि, इस फ़िलिस्तीन समर्थक रैली का आयोजन केरल में जमात-इस्लामी की युवा शाखा, सॉलिडैरिटी यूथ मूवमेंट द्वारा किया गया था। फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास के पूर्व प्रमुख खालिद मशाल ने सभा को ऑनलाइन अरबी भाषा में संबोधित किया। हमास के आतंकी को सुनने के लिए बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग वहां मौजूद थे। इस विवादित कार्यक्रम के फुटेज में एक पोस्टर प्रदर्शित किया गया था, जिस पर लिखा था कि, "बुलडोजर हिंदुत्व और रंगभेदी यहूदीवाद को उखाड़ फेंको।"

 

आलोचना और प्रतिक्रियाएँ:-

राजनीतिक स्पेक्ट्रम के नेताओं और अधिकारियों ने इस आयोजन और हमास के आतंकी की वर्चुअल भागीदारी पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की है। केरल भाजपा अध्यक्ष के सुरेंद्रन ने कहा कि ऐसी घटनाएं अस्वीकार्य हैं और इसे होने देने में केरल पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया। उन्होंने एक मान्यता प्राप्त आतंकवादी संगठन हमास और उसके नेताओं को "योद्धा" के रूप में महिमामंडित करने की आलोचना की।

इज़राइल-हमास संघर्ष पर भारत की स्थिति:-

बता दें कि, भारत ने 7 अक्टूबर को हुए "इज़राइल पर भयानक आतंकवादी हमले" की कड़ी आलोचना की थी। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की आवश्यकता पर जोर दिया। हालाँकि, भारत सरकार ने भी इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में दो-राज्य समाधान स्थापित करने के लिए सीधी बातचीत के लिए अपना समर्थन दोहराया है, लेकिन आतंकवाद पर अपना स्टैंड क्लियर रखा है। भारत का कहना है कि, किसी भी रूप में आतंकवाद का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए, और 7 अक्टूबर को इजराइल पर जो हुआ, वो आतंकी हमला ही था। हालाँकि, भारत के विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस इसे आतंकी हमला कहने से परहेज कर रहे हैं, क्योंकि इससे उन्हें मुस्लिम समुदाय के नाराज़ होने का डर है, जो आगामी चुनावों में उनके लिए समस्या बन सकता है।  

सीपीआई (एम) ने दो-राज्य समाधान का आह्वान किया:-

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में 'दो-राज्य' समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र (UN) के जनादेश को लागू करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि गाजा में चल रही घटनाएं मानवता के विपरीत हैं और शांतिपूर्ण समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र के आदेश को लागू करने के उपायों का आह्वान किया। हालाँकि, येचुरी ने भी अपने बयान में फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास का नाम नहीं लिया और न ही इजराइल पर हुए हमले का जिक्र किया, उनकी पूरी सहानुभूति एकतरफा रूप से फिलिस्तीन और गाज़ा के प्रति नज़र आई। 

UNGA में भारत का मतदान से परहेज:-

बता दें कि, भारत ने हाल ही में जॉर्डन के एक प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया, जिसमें गाजा में इजरायली बलों और हमास आतंकवादियों के बीच "तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष विराम" का आह्वान किया गया था। इसके बजाय भारत ने कनाडाई प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें हमास द्वारा आतंकवादी हमलों की निंदा शामिल थी। प्रियंका गांधी को भारत का मतदान करने से परहेज करना पसंद नहीं आया और उन्होंने भारत के रुख पर 'शर्मिंदगी' व्यक्त की। हालाँकि, भारत का कहना था कि, वो युद्धविराम का पक्षधर है, लेकिन प्रस्ताव में इजराइल पर हुए आतंकी हमले की निंदा और हमास द्वारा बंधक बनाए गए इजराइली नागरिकों की रिहाई की बात भी शामिल की जानी चाहिए। ये दोनों बातें शामिल न होने पर और केवल संघर्षविराम की बात होने पर भारत ने मतदान से दूर रहना ही उचित समझा। 

वोट बैंक के लिए हमास की निंदा नहीं कर रही कांग्रेस :-

इजराइल पर फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास द्वारा किए गए वीभत्स हमले (7 अक्टूबर) के दो दिन बाद यानी सोमवार (9 अक्टूबर) को कांग्रेस ने सुबह एक बयान जारी करते हुए इजराइल पर हुए हमले की निंदा की थी, हालाँकि, कांग्रेस ने हमले को 'आतंकी हमला' कहने से परहेज किया था। लेकिन, इसके बावजूद कांग्रेस के मुस्लिम समर्थक नाराज़ हो गए थे और सोशल मीडिया पर कांग्रेस को वोट न देने की धमकी देने लगे थे। इसके बाद कांग्रेस ने उसी दिन शाम को बड़ा यू-टर्न लेते हुए अपनी वर्किंग कमिटी (CWC) की मीटिंग में बाकायदा फिलिस्तीन (हमास का समर्थक) के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किया, यहाँ कांग्रेस ने इजराइल पर हुए हमले का कोई जिक्र ही नहीं किया। ये कदम कांग्रेस ने इसलिए उठाया है कि, उसका मुस्लिम वोट बैंक नाराज़ न हो, क्योंकि आने वाले दिनों में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव। लेकिन, ये भी एक बड़ा सवाल है कि, जिस हमास ने 40 मासूम बच्चों की निर्मम हत्या कर दी, महिलाओं के रेप किए, उन्हें नग्न कर घुमाया, बिना उकसावे के इजराइल के लगभग 1400 लोगों का नरसंहार कर दिया, उसे आतंकी संगठन नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ? 

गौर करने वाली बात ये भी है कि, सीमा विवाद तो भारत का भी पाकिस्तान के साथ है, लेकिन जब पाकिस्तानी आतंकी कश्मीर में हमला करते हैं, तो उसे हम 'आतंकी हमला' ही कहते हैं न, या फिर कुछ और ? यदि कल को पाकिस्तानी आतंकी, भारत पर इस तरह का हमला करते हैं, तो क्या कांग्रेस, भारत सरकार से पलटवार न करने और मार खाकर शांत रहने के लिए कहेगी ? आज भी इजराइल के लगभग 200 लोग हमास के पास बंधक हैं, तो क्या एक देश अपने नागरिकों को आतंकियों के चंगुल में छोड़ सकता है ? उन्हें बचाने के लिए इजराइल को लड़ना नहीं चाहिए, या अपने 1400 लोगों की मौत पर मौन धारण कर लेना चाहिए ? जैसा भारत ने 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के दौरान किया था और लगभग 200 लोगों की जान लेने वाले पाकिस्तानी आतंकियों को क्लीन चिट देते हुए '26/11 ​हमला-RSS की साजिश' नाम से किताब लॉन्च कर दी गई थी। 26/11 हमलों के बाद भारतीय वायुसेना ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार से पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई करने की इजाजत मांगी थी, लेकिन सरकार द्वारा अनुमति नहीं दी गई, जिससे आतंकियों की हिम्मत और बढ़ी थी। 

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