'भारत के पास विश्वस्तर पर चीन का विकल्प बनने का बेहतरीन अवसर, लेकिन..', वर्ल्ड बैंक के चीफ ने दी सलाह
'भारत के पास विश्वस्तर पर चीन का विकल्प बनने का बेहतरीन अवसर, लेकिन..', वर्ल्ड बैंक के चीफ ने दी सलाह
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नई दिल्ली: हाल ही में भारत का दौरा करने वाले विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने कहा कि भारत के पास विनिर्माण क्षेत्र में चीन का विकल्प बनने का एक उत्कृष्ट अवसर है. हालाँकि, बंगा ने यह भी उल्लेख किया कि भारत के पास अवसर का लाभ उठाने के लिए 10 साल नहीं हैं और इसका लाभ उठाने के लिए उसके पास तीन से पांच साल का सीमित समय है. उन्होंने कहा कि, भले ही कंपनियां पूरी तरह से चीन नहीं छोड़ती हैं, लेकिन आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए वे अन्य देशों में भी विनिर्माण पर ध्यान देंगी. ऐसे में बंगा ने सलाह दी कि भारत को दृढ़ संकल्प और उत्साह के साथ चीन का विकल्प बनने के अवसर का लाभ उठाने की जरूरत है.

बता दें कि, वैश्विक ऋणदाता (World Bank) की कमान संभालने के बाद बंगा की यह पहली भारत यात्रा थी. उन्होंने अहमदाबाद में जी20 वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों की बैठक में भाग लिया. 63 वर्षीय भारतीय-अमेरिकी बंगा ने जून में विश्व बैंक के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला, जिससे वह दो वैश्विक वित्तीय संस्थानों, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में से किसी एक के प्रमुख बनने वाले पहले अश्वेत व्यक्ति बन गए. वहीं, भारत वर्तमान में दुनिया की प्रमुख विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के अंतरसरकारी मंच जी20 की अध्यक्षता संभाल रहा है. इस बीच, चीन की अर्थव्यवस्था इस समय बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है.

चीन की खपत में उल्लेखनीय गिरावट:-

चीन में तीन साल तक सख्त कोविड-19 लॉकडाउन के कारण खपत में उल्लेखनीय कमी आई है और श्रम बाजार में भी गिरावट आई है. आंकड़ों से पता चलता है कि चीन में हर पांच में से एक युवा बेरोजगार है और उपभोक्ता मांग में गिरावट के कारण कंपनियां नौकरियां देने में असमर्थ हैं. इसके अलावा, चीन में रियल एस्टेट संकट ने महत्वपूर्ण कठिनाइयाँ पैदा की हैं. चीन में कई रियल एस्टेट परियोजनाएं अब अक्षम हैं और मांग में गिरावट के कारण डेवलपर्स को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

इस स्थिति से निपटने के लिए चीन के केंद्रीय बैंक ने डेवलपर्स के लिए लोन चुकाने की समय सीमा बढ़ाने का फैसला किया है. हालांकि, इन कोशिशों के बावजूद रियल एस्टेट सेक्टर को बचाना आसान नहीं है और चीन की कई बड़ी रियल एस्टेट कंपनियां डूब चुकी हैं.

निर्यात में अपस्फीति और गिरावट:- 

चीन की अर्थव्यवस्था के लिए अपस्फीति (वस्तुओं और सेवाओं के सामान्य मूल्य के स्तर में गिरावट) एक महत्वपूर्ण समस्या बन गई है. महीनों तक कीमतें नहीं बढ़ने से लोग खरीदारी करने से झिझक रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं की मांग में गिरावट आ रही है. मांग में कमी के कारण कंपनियों को माल का उत्पादन करना मुश्किल हो रहा है और इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने या तो कर्मचारियों को काम पर रखना बंद कर दिया है या कर्मचारियों को निकाल दिया है. कुछ कंपनियों ने अपने उत्पादों पर भारी छूट देने का भी सहारा लिया है, जिससे उनका मुनाफा कम हो गया है.

इसके अलावा, वैश्विक आर्थिक मंदी ने चीन की वृद्धि पर बड़ा असर डाला है, खासकर निर्यात पर उसकी निर्भरता के कारण. संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप सहित कई देशों में चीनी सामानों की मांग में गिरावट आई है. जून में चीन के निर्यात में लगातार दो महीने तक गिरावट देखी गई. इसके साथ ही, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तनाव ने चीन के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं, जिसके परिणामस्वरूप बीजिंग को आर्थिक नुकसान भी हुआ है. अमेरिका लगातार चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए काम कर रहा है.

कर्ज संकट :- 

मौजूदा वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण दुनिया भर में कर्ज भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. अनुमान है कि इन कंपनियों पर 500 अरब डॉलर से भी ज्यादा का भारी कर्ज है. आने वाले दिनों में स्थिति और भी खराब होने की आशंका है. नतीजतन, यह कर्ज़ संकट लगातार गहराता जा रहा है. रियल एस्टेट सेक्टर में संकट के कारण चीन की कई कंपनियां भी डिफॉल्ट का सामना कर रही हैं. विभिन्न सेक्टरों में फंसे कर्ज पर गौर करें तो चीन के रियल एस्टेट सेक्टर पर करीब 168.3 अरब डॉलर का कर्ज है.

इसके बाद दूरसंचार क्षेत्र पर 62.7 अरब डॉलर, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर 62.6 अरब डॉलर, सॉफ्टवेयर और सेवाओं पर 35.5 अरब डॉलर और खुदरा क्षेत्र पर 32.6 अरब डॉलर का कर्ज है. बाकी क्षेत्रों का योगदान 228.2 अरब डॉलर है. अगले कुछ वर्षों में 785 अरब डॉलर का कर्ज़ चुकाना बाकी है. ऐसे में यह भारत के लिए स्वर्णिम अवसर है कि, वह वैश्विक मंच पर खुद को चीन का बेहतरीन विकल्प बनाकर स्थापित करे. 

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