आतंक के मसले पर घिरा मजबूर पाकिस्तान
आतंक के मसले पर घिरा मजबूर पाकिस्तान
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एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई। ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान हुई इस वार्ता में भारत की ओर से पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर बाध्य किया गया। हां, इस बार पाकिस्तान आतंक के मसले पर पूरी तरह घिरा हुआ नजर आया। हमेशा की तरह पाकिस्तान भारत पर किसी भी तरह का दोषारोपण नहीं कर सका है। इसे एक बड़ी सफलता माना जा रहा है। हालांकि स्थिति अभी भी ढाक के तीन पाक की तरह बनी हुई है जिसमें आतंक के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की बातें की जा रही हैं। मगर यह तो तारीख ही शाहिद है कि पाकिस्तान ने आज तक अपनी धरती पर पल्लवित हो रहे आतंक को समाप्त करने के लिए किस तरह के प्रयास किए हैं। पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ हर बार कार्रवाई की बात करता है और नतीजा सिफर ही रहता है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इस बार पाकिस्तान पर किस तरह से कार्रवाई की उम्मीद की जा सकती है।

मुंबई हमले के मास्टर माईंड जकीउर रहमान लखवी और हर लश्कर एक तैयबा के कमांडर और कई आतंकी गतिविधियों में लिप्त हाफिज सईद तो अक्सर भारत के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं। इसके बाद भी पाकिस्तान द्वारा उन पर कार्रवाई नहीं की जाती। हाफिज सईद का असर भारत की कश्मीर वैली में साफतौर पर देखा जा सकता है। यहां अलगाववादी नेता हाफिज के समर्थन में खुलकर उतरते हैं। ऐसे में पाकिस्तान पर उसके खिलाफ कार्रवाई का दबाव बढ़ना स्वाभाविक है। मगर पाकिस्तान में ये आतंकी खुलेआम घूम रहे हैं वहां ये आतंक के मसले पर बैठकें और सभाऐं करते हैं लेकिन पाकिस्तानी सरकार हर बार पाकिस्तान में इन पर केस चलने की बात कहकर इनके प्रत्यर्पण को टाल देती है।

हालांकि ब्रिक्स राष्ट्रों के सम्मेलन में भारत - पाक के नेताओं की बैठक में पाकिस्तान का पलड़ा आतंक को लेकर कुछ कमजोर नज़र आ रहा था। ऐसे में भारत को इस मसले पर सकारात्मक पहल की उम्मीद है। जिस तरह से दोनों देशों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक की पहल की गई है और सैन्य संपर्क बढ़ाने पर जोर दिया गया है उससे संभावना है कि भारत सीमा पार चलने वाले आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को ध्वस्त करनेकी दिशा में कोई कदम उठा सकता है। यह इतना आसान नज़र नहीं आता। मगर जिस तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव आया है और विश्व के गुटनिरपेक्ष राष्ट्र अप्रत्यक्षरूप से गुटों में बंटते जा रहे हैं उससे आतंक के मसले पर कार्रवाई करना पाकिस्तान की मजबूरी मानी जा रही है।

यूक्रेन के मसले पर जिस तरह से रूस को आर्थिक प्रतिबंध झेलना पड़ा है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह से रूस के मित्र राष्ट्रों ने अन्य देशों का विरोध किया है उसे विश्व के गुट राष्ट्रों की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है। चीन के ब्रिक्स राष्ट्र में भागीदार बनने के कारण पाकिस्तान आतंक के मसले पर फंसता नज़र आ रहा है। तो दूसरी ओर जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक आतंकवाद का विरोध और उसे समाप्त करने के लिए आम सहमति बनती जा रही है उससेे आतंक के खिलाफ जंग में शामिल होना पाकिस्तान की भी मजबूरी बनता जा रहा है। यदि पाकिस्तान इस मसले पर महज दिखावा भी करता है तो भी उसे भविष्य में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

आखिर अमेरिकी वित्त की बैसाखी पर टिका पाकिस्तान कब तक अपने आर्थिक हालात को सुदृढ़ रख सकेगा। जबकि विश्व में ऐसा समय सामने है जिसमें अमेरिकी आर्थिक नीतियां लड़खड़ा रही हैं और इससे प्रभावित देश आर्थिक पटल पर धराशायी हो रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान को अपने मित्र राष्ट्र चीन के अलावा अभी तक अपने कट्टर शत्रु माने जाने वाले भारत से हाथ मिलाना ही होगा। ब्रिक्स देश में रूस एक सशक्त शक्ति है वहीं भारत ने भी अपना खासा प्रभाव दिखाया है ऐसे में चीन भारत से सटी पाकिस्तान की सीमाओं को आतंक के इस्तेमाल के लिए मजबूत करने की गलती नहीं करेगा। ऐसे में आतंक के मसले पर पाकिस्तान पूरी तरह से घिरा हुआ नज़र आ रहा है। मगर पाकिस्तान के पूर्ववर्ती कदमों को देखते हुए इस बात की उम्मीद कम है कि वह आतंकवाद का खात्मा करने के लिए दूसरे राष्ट्रों के साथ कदम मिलाएगा।

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