जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) द्वारा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों (Former Chief Minister) को आवास सहित अन्य सुविधाएं देने के संबंध में राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन अधिनियम 2017 के प्रावधानों को मनमाना और अवैध मानते हुए इसे रद्द कर दिया गया है. मुख्य न्यायाधीश एस रविन्द्र भट्ट और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ द्वारा यह आदेश मिलाप चंद डांडिया और अन्य की तरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए गए हैं..
संशोधन अधिनियम के तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों आवास, वाहन और करीब 9 लोगों को स्टाफ की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं. अदालत के मुताबिक, प्रदेश की आर्थिक हालत देखते हुए इस तरह का खर्च उचित नहीं है. याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि संशोधन अधिनियम, 2017 में धारा 7 बीबी और धारा 11(2) के तहत पूर्व मुख्यमंत्री को आजीवन निवास, कार, टेलीफोन और स्टाफ सहित अन्य सुविधाएं देने का प्रावधान किया गया, वहीं जबकि संविधान में ऐसी सुविधाएं देने का कोई भी प्रावधान नहीं है.
संविधान के मुताबिक, सिर्फ वर्तमान मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों को वेतन आदि का प्रावधान किया है. जबकि यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर के कई बड़े नेता पद से अलग होने के बाद किराए के मकान में रह चुके है और ऐसे में इस प्रावधान को रद्द किया जाता है.
राज्य सरकार ने दिया यह तर्क..
इस मामले में राज्य सरकार की ओर से कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को संशोधन अधिनियम, 2017 के प्रावधानों के तहत सुविधाएं दी जा रही हैं और इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोक प्रहरी के मामले में सिर्फ आवास देने को गलत माना गया है. पूर्व मुख्यमंत्रियों को उनकी गरिमा बनाए रखने के लिए सुविधाएं मिलती हैं.
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