मैराथन धाविका ओपी जैशा का आरोप, मैं वहां मर सकती थी
मैराथन धाविका ओपी जैशा का आरोप, मैं वहां मर सकती थी
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बेंगलुरू। रियो ओलिंपिक में जिन अधिकारियों को भारतीय खिलाड़ियों की जिम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को किस तरह से निर्वहन किया, उसका उदाहरण भारतीय एथलीट ओपी जैशा के रूप में आया है। रियो से लौटने के बाद जैशा ने अपनी व्यथा बताई है। उसका कहना है कि न तो उसे हौसला अफजाई करने के लिये कोई भारतीय अधिकारी या दल के सदस्य मौजूद थे और न ही उसे पीने के लिये पानी नसीब हो सका। 

रियो में मैराथन दौड़ में हिस्सा लेने के लिये ओपी जैशा भी गई थी। उसका कहना है कि उसे अपने लोगों के कारण ही परेशान होना पड़ा। जिस वक्त उसे दौड़ में हिस्सा लेना था, वहां न तो भारतीय डेस्क पर कोई प्रतिनिधि या भारतीय अधिकारी ही मौजूद थे और न ही पानी या नाश्ता मिल सका, जबकि पानी पिलाने और नाश्ता देने के लिये डेस्क की व्यस्था की गई थी। जैशा का कहना है कि मैं तीन घंटे तक बेहोश रही, लेकिन मेरी सुध लेने वाला कोई नहीं था। मेरा तापमान काफी ऊंचा हो गया था और मुझे बर्फ पर लिटाया गया। मेरे दोनों हाथों में ग्लूकोज चढ़ाया गया ताकि मैं जल्दी से जल्दी से होश में आ सकूं।  जैशा का कहना है कि हौसला अफजाई यदि होती तो संभवतः वह सफलता प्राप्त कर सकती थी। गौरतलब है कि जैशा को 89 वें स्थान से ही संतोष करना पड़ा था। स्पर्धा में 157 धावकों ने हिस्सा लिया था। जैशा हाल ही में बेंगलुरू लौटी है।

उसने बताया कि रियो में भीषण गर्मी थी तथा दौड़ के समय आठ किलोमीटर पर पेयजल और नाश्ता आदि की व्यवस्था होती है, लेकिन उसे इस व्यवस्था का लाभ नहीं मिल सका। जैशा का कहना है कि प्रतियोगिता में अन्य देशों के धावकों को सभी सुविधायें मिली, लेकिन भारतीय डेस्क पर उसके लिये कोई मौजूद नहीं था। उसने बताया कि पानी नहीं मिलने के अभाव में वह गिर पड़ी थी।

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