अच्छा स्वास्थ्य कितना महत्वपूर्ण है, यह तो सदियों से चली आ रही हमारी कहावतों से भी समझा जा सकता है; जैसे “एक तंदुरुस्ती, हजार नियामत” और “पहला सुख – निरोगी काया”। एक सामान्य व्यक्ति के लिए अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखने की बात हो तो समान्यतः वे ही बातें कही- सुनी जाती है; जो स्वास्थ्य के 6 मूल आधारों से संबन्धित होती है । पर आमतौर पर होता यह है कि कोई किसी आधार को अधिक महत्व देता है, कोई किसी और को ।
इन सभी 6 आधार बिन्दुओं को हम एक साथ समुचित और संतुलित महत्व दें, उसके लिए जरूरी है कि हम इन्हें एक साथ और समान महत्व का मानते हुए जानें । यहाँ उनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है| आगे इस लेख श्रृंखला के अगले 6 अंकों में उनके बारे में विस्तार से बताया जायेगा |
स्वास्थ्य और स्वास्थ्य-शिक्षा के 6 मूल आधार इस प्रकार हैं:
(1) संतुलित दिनचर्या: हम अपने दिन के 24 घंटों में क्या-क्या करते हैं, किस काम में कितना और कौनसा समय देते हैं, यह सब मिलकर हमारी दिनचर्या बनता है । आपकी दिनचर्या में नींद या विश्राम, शारीरिक श्रम, मानसिक श्रम, भोजन, स्नान और सामाजिक संवाद (या बातचीत) आदि सभी के लिए समय का वितरण होना चाहिये । इनमें से किसको कितना और कौनसा समय देना है; यह हर व्यक्ति का अपनी-अपनी आवश्यकता और परिस्थितियों पर निर्भर करता है । परंतु, कुछ सामान्य नियम भी है; जैसे- समान्यतः एक वयस्क व्यक्ति को 6 से 8 घंटे नींद की आवश्यकता होती है या दिन में दो से 4 बार तक भोजन करना उचित होता है, आदि ।
दिनचर्या को संतुलित रखने के लिए जरूरी है कि आप अपना दिन-भर का टाइम-टेबल बना लें । जिसे यथासंभव /मोटे तौर पर पालन करें किन्तु, विशेष स्थितियों या विशेष कारण से उसमें परिवर्तन या सुधार की जरुरी लगे तो ऐसा करने के लिए भी तैयार रहे । यह टाइम-टेबल ऐसा ही होना चाहिये, जिसे आप स्वभाविक रूप से, बिना दबाव के, मन से पालन कर सकें और जिसका पालन करने से आपका स्वास्थ्य तो अच्छा रहे ही अन्य परिणाम या आपकी जीवन में प्रगति भी अच्छी रहे।
(2) संतुलित भोजन : भोजन से ही हम कामों के लिए ऊर्जा प्राप्त करते हैं, हमारे शरीर के ऊतकों का निर्माण भी होता है और इसके खास तत्वों से ही हमें रोगों से लड़ने की क्षमता भी मिलती है । इसलिए स्वास्थ्य के लिए भोजन बहुत महत्वपूर्ण है (किन्तु वही सब कुछ नहीं है )। हमारे भोजन में 3 खाद्य समूहों के पदार्थ समुचित मात्र में होना चाहिये । 1) ऊर्जा देने वाले यानि मुख्यतः कार्बोहायड्रेट्स एवं वसा (अनाज,घी –तैल आदि), 2) निर्माण करने वाले यानि प्रोटिन्स (दालें, दूध, अंडा, माँस-मछली आदि) तथा 3) रोगों से रक्षा करने वाले यानि विटामिन्स और मिनरल्स (फल, सब्जियाँ, सलाद, मसालें आदि) । इन सभी समूहों के कोई न कोई पदार्थ यदि हमारे भोजन में प्रतिदिन समुचित मात्रा में शामिल है तो हमारा भोजन संतुलित कहलाएगा ।
(3) समुचित व्यायाम / शारीरिक श्रम : शरीर के विभिन्न अंगों व मांसपेशियों की सक्रियता और शक्ति के लिए आवश्यक है कि उनके द्वारा हम कुछ न कुछ भौतिक श्रम या कार्य करें । किसी न किसी प्रकार का व्यायाम तो शरीर को ठीक आकार में रखने के लिये अर्थात मोटापे या दुर्बलता से बचने के लिए भी जरूरी है । चूँकि, आजकल स्वाभाविक रूप से होने वाला शारीरिक श्रम कम हो गया है, इसीलिये भी अब विभिन्न प्रकार के व्यायाम दिनों-दिन अधिक लोकप्रिय होते जा रहे हैं; जिनमें से योग और एरोबिक्स सबसे तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं | योग सर्वश्रेष्ठ व्यायाम के रूप में दुनिया भर में मान्यता पा रहा है; इसीलिये पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस बहुत सफलता के साथ मनाया गया |
(4) समुचित विश्राम: जितना महत्व श्रम करने का है: उतना ही समुचित विश्राम का भी है | पर्याप्त विश्राम के बाद ही, दिन भर की थकान उतरती है, फिर शरीर ताजगी और ऊर्जा से लैस होकर अगले दिन के कामों के लिए तैयार हो जाता हैं | अच्छे विश्राम के बाद ही हम, जीवन में शारीरिक व मानसिक श्रम के साथ अपनी दिनचर्या को संतुलित बनाते हैं | सामान्यतः तो लोग दिन में विविध काम करते हैं; और रात में आराम करते हैं | परन्तु, बदलते हुए ज़माने में बहुत से लोगों को रात में देर तक काम करना होता है या नाईट ड्यूटी भी करना रहती हैं; ऐसे मामलों में अलग तरह का टाइम-टेबल बनाना पड़ेगा | ऐसे लोगों को आराम की कमी न हो जाये; इसके लिए जरुरी है कि वे कुछ समय दिन में भी आराम करें |
(5) सकारात्मक सोच और मन का संतुलन : तन का स्वास्थ्य तो महत्वपूर्ण है, पर मन का स्वास्थ्य उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है | साथ ही यदि मन अस्वस्थ्य है तो उससे तन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है और बहुत बार वह भी बीमार हो जाता है | उसी तरह तन बीमार होता है तो हमारा मन भी बीमार हो सकता है या मन भी ठीक नहीं होता | मन के बीमार होने का मतलब पागल होना या डिप्रेशन में होना ही नहीं होता बल्कि मन की भी कई तरह की अस्वस्थ्यता होती है, जैसे मूड ठीक नहीं होना या सामान्य रूप से उदास होना आदि | आपकी मानसिक कार्यप्रणाली संतुलित एवं सामान्य है, आपके मन में सुकून है, प्रसन्नता है व सजगता है; तभी आप मन से भी स्वस्थ्य कहलायेंगे | मन पर विचारों का ही सर्वाधिक असर होता है; इसलिए सकारात्मक विचारों से मन स्वस्थ्य बनता है और नकारात्मक विचारों से बीमार | मन के स्वास्थ्य का सीधा असर आपके व्यवहार पर, कार्यकुशलता पर और जीवन के हर पहलू पर पड़ता है |
(6) परिवार, समाज और परिवेश के साथ सामंजस्य व व्यवहार का संतुलन स्वास्थ्य से इसका कितना सम्बन्ध है; इसे समझने के लिए, एक सरल और बहुत ही सामान्य सा उदहारण लेते है | हर वर्ष तीन-तीन माह के अंतर से मौसम में बड़ा बदलाव आता है; कुछ लोग इस बदलाव के साथ जल्द सामंजस्य (Adjustment) बैठा लेते हैं, कुछ नहीं बैठा पाते है | किसी को गर्मी सहन नहीं होती, किसी को सर्दी | उसी तरह से किसी को किसी खास शहर में या खास गांव में ही अच्छा लगता हैं; अन्य जगह जाने पर, वे पहले मन से फिर तन से भी बीमार पड़ जाते हैं | इसी बात को फैला कर देखे तो पाएंगे कि, कई लोग इसलिए बीमार होते है या खुद को बीमार महसूस करते है, क्योंकि उनका अपने परिवार, समाज या परिवेश के साथ सामंजस्य नहीं होता है |
इसके विपरीत यदि आपका अपने परिवार, समाज व देश के साथ सामंजस्य अच्छा है और आप बहुत हद तक अपने परिवेश व परिस्थितियों में बदलाव से भी स्वयं को सु-समायोजित कर लेते हैं; तो आप Well-adjusted person (सु-समायोजित व्यक्ति) कहलायेंगे और सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से भी स्वस्थ्य माने जायेंगे अन्यथा नहीं | स्वास्थ्य के इस पहलु को फ़िलहाल लोग कम जानते है और इसे मनोविज्ञान, समाजशास्त्र आदि का ही विषय मानते है | किन्तु WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार यह भी हमारे स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण पहलु है | इसके बारे में विस्तार से हम इस लेख श्रृंखला की अंतिम कड़ी में विस्तार से जानेंगे | फ़िलहाल यहाँ इतना जरूर समझ लीजिये कि इन सभी 6 आधारों की मजबूती से ही अच्छा स्वास्थ्य मिल सकता है | चूँकि, स्वास्थ्य केवल बीमारियों के आभाव का नाम नहीं है; इसके आलावा भी इसके बहुत व्यापक व गहरे अर्थ है | * हरिप्रकाश 'विसंत'