विश्व प्रसिद्ध
विश्व प्रसिद्ध "लट्ठमार होली" के साथ अनेकों प्रकार से मनाई जाती है बरसाने में होली
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मथुरा। कुछ ही दिनों में हम सब भारत का सबसे लोकप्रिय त्यौहार होली मनाएंगे। जैसा की सभी जानते है, देश में विभिन्न प्रकार से रंगो के इस त्यौहार को मनाया जाता है। लेकिन जहां बात होली की हो रही है, वहां ब्रज को कैसे भूल सकते है, ब्रज में खेली जाने वाली होली तो पुरे विश्वभर में प्रसिद्द है। देश-दुनिया से लोग यहाँ होली खेलने आते है। ब्रज में खेली जाने वाली होली अनोखी तो है ही, लेकिन क्या आप जानते है, ब्रज में ही होली कई विभिन्न प्रकार से खेली जाती है। आम तौर पर होली, होली के दूसरे दिन यानी दुल्हैंडी के दिन मनाई जाती है, लेकिन मथुरा और वृन्दावन में होली के तकरीबन 1 माह पहले से ही होली की शुरुआत हो जाती है। आइये अब जानते कि, ब्रज में कितने प्रकार से होली मनाई जाती है। 

बरसाने की लड्डू होली 

बरसाना के श्री जी मंदिर में लड्डू होली खेली जाती है। इस प्रकार से होली खेलने के दौरान लोग एक दूसरे पर रंग या गुलाल नहीं उड़ाते बल्कि लड्डू फैकते है, यानी लड्डुओं को एक-दूसरे पर डालकर इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस प्रकार से होली खेलने के पीछे मान्यता है कि, नंदगाव से होली खेलने बरसाना आने का आमत्रण स्वीकार करने की परंपरा का जुड़ाव है। बताया जाता है कि, राधा रानी के पिता ने श्री कृष्ण के पिता को होली खेलने बरसाना आने का आमंत्रण दिया था, जिसे नंदबाबा के द्वारा स्वीकार लिया गया था। वहीं, इस आमत्रण की स्वीकृति पत्र के साथ एक पुरोहित बरसाना गए थे जहां उन्हें गोपियों ने गुलाल लगाया था और पुरोहित के पास गुलाल नहीं था तो उन्होंने थाल में रखे लड्डू गोपियों पर बरसाना शुरू कर दिया। बस तभी से लड्डू होली की परम्परा निरंतर चली आ रही है। 

बांके बिहारी मंदिर की रंगभरी होली

बांके बिहारी मंदिर में होली का त्यौहार करीब 40 दिनों तक मनाया जाता है। यहां पर बसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो जाती है वहीं, मान्यतता है कि, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान श्री बांके बिहारी अपने भक्तों के साथ होली खेलते है। परंपरा के मुताबिक़ ख़ास ताऊ पर रंगभरी एकादशी से 5 दिनों तक बांके बिहारी मंदिर पर लोग रंगों से होली खेलते है। 

बरसाना की लट्ठ मार होली 

मान्यता है कि, श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ राधा रानी से मिलने बरसाना जाया करते थे, लेकिन उनकी शरारतों से परेशान हो कर राधा रानी और उनकी सखियां, श्री कृष्ण और उनके सखाओं पर लाठिया बरसाती थी वहीं, गोपियों के द्वारा बरसाई जा रही लाठियों से बचने के लिए सभी ढाल का इस्तेमाल करते थे। बस तभी से इस परम्परा की शुरुआत हो गई और आज इसे बरसाना की लट्ठ मार होली के नाम से पुरे विश्व में जाना जाता है। 

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