वीडियो: क्या आप जानते हैं 'Chess' का इतिहास
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जब भी भारतीय खेलों का नाम आता है तो उसमे सबसे पहले शतरंज का जिक्र होता है, शतरंज ही वो खेल है जो भारत में प्राचीन काल से खेला जाता रहा है. यह एक ऐसा खेल है जिसमे भले ही शारीरिक ताक़त न लगती हो, लेकिन दिमागी कसरत भरपूर हो जाती है. राजा, रानी, घोड़े, हाथी, प्यादे... कुछ ऐसी ही हैं शतरंज की चालें. यह खेल अपने पाले में रखे राजा को बचाने और दूसरे के पाले में रखे राजा को हराने के लिए खेला जाता है. वो भी शह और मात के साथ, इतना आसान नहीं है शतरंज का खेल जितना सुनने में लगता है.

शतरंज पर शोध कर चुके विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक ऐसा खेल है जो प्राचीन समय के लोगों की जिंदगी को दर्शाता है, इस शतरंज के प्यादे जिस बोर्ड पर चलते हैं उसका आकार. इस बोर्ड का चौरस आकार और उसमें भी काले और सफेद रंग के डिब्बे, यह सभी प्राचीन सभ्यता को कहीं ना कहीं दर्शाते हैं. यदि पश्चिमी देशों की बात करें तो वहां शतरंज का जन्म लगभग 1500 वर्ष पुराना माना जाता है, किन्तु भारतीय इतिहास में इस खेल का महत्व अति प्राचीन है.

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार शतरंज 6वीं शताब्दी में बनाया गया खेल है जो धीरे-धीरे भारत की सीमा को लांघता हुआ पारसी देशों तक पहुंचा, उसके बाद कुछ ही वर्षों में इस रोचक खेल ने विश्व भर में अपनी जगह बना ली. कहते हैं कि गुप्त काल के समय पर ही शतरंज का अविष्कार किया गया था, यदि आपको मालूम हो तो महाभारत काल में पासे के प्रयोग से खेल खेला जाता था. यह वही खेल था जिसकी मदद से कौरवों ने पाण्डवों से उनकी सारी सम्पत्ति छीन ली थी. साथ ही उनकी पत्नी द्रौपदी को भी बेइज्जत किया था. उस ज़माने में राजा हुआ करते थे, वे पासों के इस खेल का किस्मत पर निर्भर होने जैसा वजूद देखकर तंग आ गए थे और चाहते थे कि काश कोई ऐसा खेल हो जिसमें दिमाग का इस्तेमाल हो.

जिसमें ना बल हो और ना ही किस्मत पर निर्भर होने जैसी बात, वरन् खिलाड़ी अपनी चतुराई से जीत हासिल करें. उनकी इसी जिज्ञासा ने शतरंज जैसे खेल को जन्म दिया, तब शतरंज का नाम वह नहीं था जो हम सुनते आ रहे हैं, वरन् राजा ने इस खेल को चतुरंग का नाम प्रदान किया था. उस समय यह खेल एक बड़े से बोर्ड पर खेला जाता था जिसे वास्तु पुरुष मंडल कहते थे, इस बोर्ड को 8x8 के हिस्सों में बांटा हुआ था. कहते हैं वास्तु पुरुष मंडल को कुछ ऐसा आकार दिया गया था मानो पूरे ब्रह्मांड को आठ-आठ के हिस्सों में बांटकर उसमें शहरों को बसाया हो.

बाद में इसका नाम चतुरंग से बदलकर अष्टपद रख दिया गया. यह खेल जिन-जिन देशों में पहुंचा, वहां के लोगों ने इसे अपने अनुसार नाम प्रदान किए स्पेन में जहाँ इसे 'एजेडरेज़' बोलै जाता था, वहीँ पुर्तगाली इसे 'जादरेज़' कहते थे, यूनान में यह खेल जात्रिकियो के नाम से प्रसिद्ध हुआ था. काफी लम्बा सफर तय करने के बाद इस बेहतरीन खेल को 'chess' नाम दिया गया, जो आज तक जारी है.

 

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