करप्शन केस पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अब प्रत्यक्ष सबूत के बगैर भी हो सकेगी सजा
करप्शन केस पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अब प्रत्यक्ष सबूत के बगैर भी हो सकेगी सजा
Share:

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने आज यानी गुरुवार (15 दिसंबर) को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किसी लोकसेवक को दोषी ठहराने के लिए रिश्वत मांगने के सीधे सबूत की आवश्यकता नहीं है और ऐसी मांग को परिस्थितिजन्य सबूतों से साबित किया जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि भले ही शिकायतकर्ता की मृत्यु हो जाने से या अन्य परिस्थितियों के चलते प्रत्यक्ष साक्ष्य अनुपलब्ध हो, लोक सेवक को तब भी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोषी ठहराया जा सकता है, जब यह बात साबित हो गई हो कि उसने रिश्वत की मांग की थी। 

संविधान पीठ ने ये भी कहा कि कानून की एक कोर्ट मांग या स्वीकृति के संबंध में तथ्य का अनुमान सिर्फ तभी लगा सकती है जब मूलभूत तथ्य सिद्ध हो गए हों। न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की 5 जजों की खंडपीठ ने इस मामले में 23 नवंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था। फरवरी 2019 में, सर्वोच्च न्यायालय की दो जजों की बेंच ने सत्यनारायण मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में 2015 के सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले में असंगतता पाते हुए इस मामले को भारत के चीफ जस्टिस (CJI) के पास भेज दिया था, जिसमें कहा गया था कि आरोपी के खिलाफ प्राथमिक सबूतों की कमी है, इसलिए दोषी, लोक सेवक को बरी कर दिया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट को भ्रष्ट लोगों के खिलाफ नरमी नहीं बरतनी चाहिए। अदालत ने आगे कहा कि भ्रष्ट अफसरों पर केस दर्ज किया जाना चाहिए और उन्हें दोषी ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि भ्रष्टाचार ने शासन को प्रभावित करने वाले एक बड़े हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। अदालत ने कहा कि ईमानदार अधिकारियों पर इसका असर पड़ता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है, तो परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर भी एक भ्रष्ट सरकारी अधिकारी को दोषी ठहराया जा सकता है।

शिकायतकर्ता साक्ष्य/अवैध संतुष्टि की मांग के प्रत्यक्ष या प्राथमिक सबूत के अभाव में, संविधान पीठ ने कहा कि धारा 7 और धारा 13(1)(डी) के तहत एक लोक सेवक के दोष/अपराध की अनुमानित कटौती निकालने की इजाजत है। 2019 में, एक खंडपीठ ने इस मामले को संविधान पीठ को भेजा था।

दिल्ली में क्यों नहीं थम रहे Acid Attack के मामले? बिक्री पर बैन के बावजूद 3 साल में 32 केस

भारत का रूस से तेल खरीदना सही या गलत ? IMF डायरेक्टर गीता गोपीनाथ ने दिया बड़ा बयान

'इससे आसमान नहीं गिर जाएगा', रिलायंस इंडस्ट्री से जुड़े केस पर भड़की सुप्रीम कोर्ट

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
Most Popular
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -