वे कहते हैं, शिक्षा का माध्यम हो मातृभाषा |
सिंधियों के लिए सिंधी, हिंदियों के लिए हिंदी-भाषा |
ये कहते है, हिंदी माध्यम से पढ़ेंगे, तो हमारे बच्चे मॉडर्न और स्मार्ट कैसे बनेंगे ?
कॅरियर की दौड़ में फिसड्डी रहेंगे|
कैसे आईएएस बनेंगे, कैसे आईआईटी जायेंगे ? कैसे आईआईएम की सीढियाँ चढ़ेंगे ?
वे कहते हैं, अपनी अर्जियां लिखो,हिंदी में |
और कामकाज भी करो, हिंदी में |
कम-से-कम हस्ताक्षर तो करो हिंदी में |
ये कहते हैं, साब लोग अंग्रेजी लाइक करते हैं |
आम लोग भी इंग्लिश से इम्प्रेस होते हैं |
और बहुतों को तो हिंदी वाले गंवार लगते हैं |
और तो और, नाई, मोची, पनवाड़ी भी, अंग्रेजी का ही बोर्ड लगाते हैं |
खुद नहीं पढ़ पाये, भले ही |
सोचते हैं, नाई की दुकान जब जेंट्स पॉर्लर हो जाएगी, तो रुपये की सीरत भी, डॉलर हो जायेगी |
हाँ भाई, ग्राहक भी तो ऐसा ही सोचते हैं कि, मिठाई भंडार की मिठाई में वो टेस्ट नहीं है |
स्वीट्स शॉपी के स्टेटस से वह श्रेष्ठ नहीं है |
इसलिए ये कहते हैं पढाई हो, नौकरी हो या कारोबार जब इंग्लिश ही स्टेटस व स्मार्टनेस की निशानी बन गई है |
तो मातृभाषा से नाता कैसे व क्यों निभाए ?
बच्चों को भी शुद्ध हिंदी क्यों सिखाये ?
चलो एक दिन हिंदी-दिवस मना लेंगे |
साहित्यकारो की तस्वीरों पर मालाएं चढ़ा देंगे |
हिंदी-साहित्य व हिंदी-प्रेम का क्या करना है ?
बाकी दिन तो इंग्लिश को ही, प्रेयसी बनाकर ग्लोबल विलेज में, स्मार्टनेस के डींगें भरना है|
क्या कभी समझेंगे हम कि, भाषा तो बस अभिव्यक्ति की माध्यम है; स्मार्टनेस और स्टेटस की प्रमाण नहीं है |
मातृभाषा को हीन समझने वाला, तो खुद ही आत्मसम्मान से हीन है, स्मार्ट नहीं है |
हरिप्रकाश 'विसंत'