क्या सरकार ने छोड़ दिया है 'स्पर्धा' का नॉन-स्मार्ट तरीका
क्या सरकार ने छोड़ दिया है 'स्पर्धा' का नॉन-स्मार्ट तरीका
Share:

क्या सरकार ने छोड़ दिया है, स्पर्धा का नॉन-स्मार्ट तरीका?

(25 जून को होने वाली है 20 स्मार्ट शहरों की घोषणा)

मोदी सरकार का एक बहु-प्रचारित कार्यक्रम है, देश के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाना । इस मामले में सरकार द्वारा समय-समय पर अलग-अलग तरह की बातें कही गई और कई बार अपनी नीति को सरकार पलटती रही है । अब फिर से एक बार लग रहा है, कि सरकार ने स्मार्ट शहरों के चयन की अपनी पूर्व-घोषित नीति से पलटी खा ली है ।

सबसे पहले सरकार ने इस योजना का जो कन्सेप्ट-पेपर जारी किया था उसमें जो शहरों के चयन के लिए 5 आधार बताये थे उनको सामने रखकर देखें, तो कोई भी जनसंख्या के आंकड़ों को देखते हुए लगभग सभी 100 शहरों के नाम आधे घंटे में ढूंढकर आसानी से बता सकता था । अर्थात इसमें कोई खास केंद्र-राज्य खींचतान, बौद्धिक कवायद या नौकरशाहों के बीच कोई स्पर्धा की गुंजाइश ही नहीं थी । फिर अचानक कहीं से यह फितूर आया कि सरकार ‘स्पर्धा-आधारित’ चयन की बात करने लगी । यह कथित स्पर्धा कहने के लिए ही शहरों के बीच स्पर्धा थी, असल में केवल संभावित शहरी निकायों में पदस्थ अफसरों के बीच प्रजेंटेशन-स्किल्स की प्रतियोगिता थी (शायद अब ‘है’ कहना सही नहीं रहा) । इस स्पर्धा-आधारित चयन को अपनाने का स्पष्ट मतलब था कि सरकार ने कन्सैप्ट-पेपर में घोषित 5 आधारों को बिना कारण बताये त्याग दिया था और अपने मूल कन्सेप्ट्स से ही पलट गई थी । पर, अफसोस सरकार के पलटी खाने की इस घटना पर किसी ने ध्यान नहीं दिया (लेखक को छोड़कर)।

 इसके बाद सरकारी सूत्रों से अलग-अलग तरह की खबरें आती रही । उनका विस्तृत उल्लेख तो फिलहाल यहाँ छोड़ते हैं । सरकार की ताजा घोषणा की बात करते हैं । खबर है कि सरकार इसी 25 जून को शहरी विकास से संबन्धित दो जुड़वा योजनाओं का प्रारम्भ करेगी । जिनमें एक तो यह 100 स्मार्ट सिटीज़ की योजना है और दूसरी 500 मध्यम श्रेणी के शहरों के विकास की ‘अमृत’ योजना है । इसीके साथ सरकार ऐसे 20 शहरों के नामों की घोषणा भी कर देगी, जिनको स्मार्ट बनाने का काम इसी वर्ष शुरू हो जायेगा । सरकार 100 स्मार्ट सिटीज़ के लिए 48 हजार करोड़ और अमृत योजना के लिए 50 हजार करोड़ के खर्च की घोषणा पहले ही कर चुकी है ।                

आज से केवल 12 दिन बाद सरकार स्मार्ट बनने वाले 20 शहरों के नाम घोषित कर देगी । आश्चर्य है कि शहरी विकास मंत्री वेंकय्या नायडू की इस घोषणा पर किसी ने यह नहीं पूछा कि आपकी स्पर्धा-आधारित चयन पद्धति का क्या हुआ ? तथ्यों को देखें तो स्पष्ट है कि सरकार अपनी घोषित नीति से एक बार फिर पलट गई है । क्योंकि, कहीं से यह खबर नहीं मिली है कि ‘स्पर्धा’ की स्वभाविक प्रक्रिया के अनुसार जो 130 से अधिक शहर (असल में तो शहरों के अफसर) यहाँ प्रतियोगी हैं, उनमें से किसी ने भी अपनी-अपनी उत्तर-पुस्तिकाएँ जमा करवा दी हैं; तो उनके परीक्षकों द्वारा मूल्यांकन करके स्पर्धा के परिणाम बताने का सवाल ही कहाँ उठता है ।

स्मार्ट बनने योग्य शहरों के चयन के लिए घोषित यह स्पर्धा बड़ा ही बेतुका और तुगलकी तरीका था । यह तो ऐसा ही था जैसे कोई स्कूल या कॉलेज किसी खास आकर्षक कोर्स में प्रवेश के लिये विद्यार्थियों का ‘एप्टिट्यूड टेस्ट’ लेने के बजाय उनके माता-पिताओं के ज्ञान और क्षमता की परीक्षा ले । अफसरों की स्पर्धा के लिये सरकार ने ’10 कमांडमेंट्स’ के नाम से कोई 10 प्रश्न-पत्रों वाली परीक्षा घोषित की थी । ये 10 कमांडमेंट्स काफी विशेषज्ञता, मेहनत और समय मांगने वाली कागज़ी कवायदे थी, जो एक-दो महीने में ही पूरी करना किसी भी शहरी निकाय के अफसरों की टीम के बस की बात नहीं थी । यह जानते हुए ही शायद, किसी भी शहर के अफसरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया व इस दिशा में कोई हड़बड़ी नहीं की । शायद वे जानते थे कि यह स्पर्धा सरकार का कोरा शिगूफ़ा ही है ।

अर्थात न तो किसी ने 10 कमांडमेंट्स पूरे किए, न स्पर्धा के कोई निर्णायक तय हुए और 20 शहरों का चयन हो गया । मतलब साफ है कि ‘स्पर्धा-आधारित’ चयन के फितूर को चुप-चाप ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और किसी ने ध्यान ही नहीं दिया, कोई सवाल ही नहीं पूछा । अभी भी यह तय नहीं है कि इस फितूर को सरकार ने हमेशा के लिये छोड़ दिया है या 20 के बाद अगले शहरों के चयन में फिर यह शिगूफा शेष शहरी ब्यूरोक्रेट्स पर छोड़ा जायेगा । विपक्षी दल तो खुद को किसान और गरीबों के हमदर्द बताने में इस कदर लगे हैं कि सरकार द्वारा पलटी खाने की इस कलाबाजी पर कोई प्रश्न या टिप्पणी भी नहीं हो रही है ।                 

वैसे सरकार ने स्पर्धा-आधारित चयन का तुगलकी विचार हमेशा के लिये छोड़ दिया हो तो यह अच्छी ही बात है । लेकिन, जिस प्रकार से यह सब होता रहा और बुद्धिजीवी, मीडिया के विद्वान और विपक्ष सब इस पर चुप्पी साधे रहे, यह लोकतन्त्र के स्वास्थ्य के लिये अच्छे लक्षण नहीं हैं । लोकतन्त्र तभी दुरुस्त माना जा सकता है, जबकि सरकार जो कुछ करती है, खासतौर पर जो नीतियां बनाती है, उनकी हर कदम पर प्रबुद्ध वर्ग, मीडिया और विपक्ष गहरी समीक्षा करते रहें, सरकार की गलतियों पर स्वास्थ्य आलोचना होती रहे साथ में सही क्या है और बेहतर क्या है, यह भी बताया जाता रहे । पर इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब जबकि ऐसा लग रहा है कि सरकर ने ‘अफसरों की स्पर्धा’ का नॉन-स्मार्ट तरीका छोड़ दिया है और मोहम्मद तुगलक दौलताबाद से वापिस दिल्ली की ओर मुड़ गया है । तब भी हमें सरकार को नीति-निर्धारण के मामलों में किसी भी बदलाव से पहले (या साथ में) कारण बताने व पारदर्शिता बरतने की हिदायत तो देना ही चाहिए ।           

वैसे यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना उचित रहेगा कि अपने अध्ययन के आधार पर लेखक का मानना है कि 100 स्मार्ट सिटीज़ और 500 शहरों के लिये ‘अमृत’ योजना दोनों बहुत अच्छे विचार हैं ।  क्योंकि ये केवल शहरवासियों के लिए साधन-सुविधाएं बढ़ाने की योजनाएँ नहीं है । खासतौर पर 100 स्मार्ट सिटीज़ बनाने के उद्धेश्यों में सर्वप्रमुख है, इन शहरों को देश के विकास के ग्रोथ-इंजिन्स बनाना और इनकी छवि से देश में पूंजी-निवेश को आकर्षित करना । साथ ही इनमें केवल भौतिक संसाधनों पर ही ज़ोर नहीं है, बल्कि हर दृष्टि से ‘जीवन की गुणवत्ता’ बढ़ाने की बात कही गयी है । जिनमें पर्यावरण, शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक, सांस्कृतिक और टिकाऊ विकास संबंधी दृष्टिकोण शामिल हैं ।

सरकार ने योजना के मूलभूत दस्तावेज़ ‘कन्सेप्ट पेपर’ में तो इन सब समझदारी वाली बातों का उल्लेख किया है । हालांकि उसमें भी कुछ अलग तरह की तुलनात्मक रूप से छोटी गलतियाँ की है । किन्तु, जब सरकार ने यह ‘स्पर्धा’ का शिगूफ़ा छोड़ा था, तो उससे तो ऐसा लगा कि जैसे सरकार इस योजना के सबसे प्रमुख उद्देश्य “100 शहरों को विकास के ग्रोथ-इंजिन बनाना” को ही भूल गयी है । अभी यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार को कितनी सद्बुद्धि आई है और वह योजना के सभी मूल उद्देश्यों को आगे भी लगातार समुचित धन रखेगी या नहीं ? इसलिये, जरूरी है कि लोकतन्त्र के प्रहरी वर्ग ‘मीडिया और विपक्ष’ सदैव सजग रहकर उसके कामों कि समीक्षा करता रहे । उल्लेखनीय है कि इन अच्छी योजनाओं का समर्थक होने और इनके नीति-विषयक मामलों में विशेष रुचि होने के कारण लेखक इनके बारे में उठाए गए सरकार के कदमों का बारीकी से अध्ययन करता रहा है और गलतियों की अपने लेखों द्वारा आलोचना की है।           

-- हरिप्रकाश ‘विसन्त’

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -