गुरु गोबिंद सिंह की जयंती आज, त्याग और बलिदान से भरा रहा है जीवन
गुरु गोबिंद सिंह की जयंती आज, त्याग और बलिदान से भरा रहा है जीवन
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 सिख संप्रदाय की स्थापना का मुख्य मकसद मुग़ल आक्रांताओं से हिन्दुओं की रक्षा करना था. इस संप्रदाय ने भारत को कई अहम अवसरों पर मुगलों और अंग्रेजों से बचाया है. सिखों के दस गुरु माने गए हैं, जिनमें से अंतिम गुरु थे गुरु गोबिंद सिंह. खालसा पंथ के संस्थापक दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी और कवि भी थे. गुरु गोबिंद सिंह जी आज भी अपने त्याग और वीरता के लिए सभी के प्रेरणास्त्रोत हैं.

गुरु गोविंद साहब को सिखों का अहम गुरु माना जाता है. उनकी सबसे बड़ी खासियत उनकी वीरता थी. उनके द्वारा दिए गए शब्द 'सवा लाख से एक लड़ाऊँ' आज भी उनकी वीरता का बखान करते हैं. उनके मुताबिक, शक्ति और वीरता के संदर्भ में उनका एक सिख, सवा लाख लोगों के बराबर है. श्री गुरु गो‍बिंद सिंह जी का जन्म पौष सुदी 7वीं सन 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ था. उस वक़्त गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे. उन्हीं के कहे अनुसार बालक का नाम गोविंद राय रखा गया और सन 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए. इनका बचपन बिहार के पटना में ही गुजरा. जब 1675 में श्री गुरु तेगबहादुर जी दिल्ली में हिंन्दु धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए, तब गुरु गोबिंद साहब जी गुरु गद्दी पर विराजमान हुए. गुरु गोबिंद सिंह के पुत्र साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को जिंदा दीवार में चुनवा दिया जाना, वीरता व बलिदान की अप्रतिम मिसालें हैं. इस पूरे घटनाक्रम में भी अड़िग रहकर गुरु गोबिंद सिंह संघर्षरत रहे, ऐसा कोई महात्मा ही कर सकता है.

अपने अंतिम समय में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने सभी सिखों को एकत्रित किया और उन्हें मर्यादित तथा शुभ आचरण करने, देश से प्रेम करने और हमेशा दीन-दुखियों की मदद करने की सीख दी. इसके बाद यह भी कहा कि अब उनके बाद कोई देहधारी गुरु नहीं होगा और ‘गुरुग्रन्थ साहिब‘ ही आगे सिखों के गुरु के रूप में उनका मार्ग दर्शन करेंगे. गुरु गोबिंद सिंह का निधन 7 अक्टूबर सन् 1708 ई. में नांदेड़, महाराष्ट्र में हुआ था.

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