गुलाम प्यादे
गुलाम प्यादे
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संगमरमर के महल के बारांदें में ,अपने कुत्रे हुए पंखो से आदमकद ऊँची मच्चान पर बैठकर, सुखे मेवे खाते हुए तोते ने नीम के पेड़ पर  बैठी कोयल से कहा - कैसी हो? | अपनी स्वाभिमानी मुस्कान और सुरीली कंठ से कोयल बोली- प्रभु कृपा से आनंद में हूँ | तोते ने पलटकर झेंपते हुए पूछा खाना खाया ? कोयल बोली नहीं थोड़ी देर में दाने की तलाश में उड़ान भरूँगी| 

तोते ने अट्हास से कहा - अरि कोयल तू तो बड़ी बेवकूफ है, सुखे मेवे और मिष्टान तेरे सामने इस सोने की कटोरी में पड़े है , मैं तुझे हर बार बुलाता हूँ, फिर भी तू नहीं आती | क्या नीम की निम्बोली इस मिष्टान से ज़्यादा मीठी है | सुबह से लेकर शाम तक हर पेड़ , खेत, जंगल  में खाना ढूंढती है, बंजारे जैसी तेरी जिंदगी में दुश्वारियों के सिवा क्या रखा है? अरि तेरा कंठ कितना सुरीला है अपने इस गुण को क्यों नही भुनाती ? इस महल की रानी के पास चल, वो तेरे सुरीले कंठ की बहुत अच्छी किम्मत देगी, तुझे मेरे जैसे राजसी ठाट बाँट मिलेंगे और रहने को ये महल, तुझे दाने दाने के लिये जंगल जंगल नही भटकना पडेगा | अरि कुछ तो बोल ..

कोयल- पुनः अपनी स्वाभिमानी मुस्कान और सुरीली कंठ से बोली - भैया ! आपने मेरा ख्याल किया आपका शुक्रिया| मुझे कोई दुःख नहीं बल्कि मुझे ये आज़ाद ज़िन्दगी अच्छी लगती है, अपने पंखों से मैं पूरा आसमान नाप लेती हूँ , और अपने गीत से बसंत की पूर्व सूचना देती हूँ | भगवान् ने जो कला मुझे दी है, उससे उन्ही को अर्पित कर देती हूँ, और अपनी मेहनत से जो मुझे मिलता है उसमे ही संतोष है मुझे | 

तोता- इतना घमंड भी अच्छा नहीं कोयल रानी, आखिर तुझे रूखी सुखी रोटी में मिलता ही क्या है ? फिर कहता हूँ महल की रानी का मनोरंजन कर, वो तुझे हीरे-मोती में तोल देंगी | मुझे देख कितने ठाट से हूँ यंहा |

कोयल -  तोते के कुत्रे पंख की तरफ इशारा करती हुई बोली...

हम बहता जल पिने वाले, मर जाएंगे भूखे प्यासे,

कंही भली है कुटुक निम्बोरी, कनक कटोरी की मेवा से!!

अपनी गुलामी की जी-हजूरी करते हो भैया,अपने पंख तक कुतरा बैठे हो, याद रखो  इस राजसी ठाट  बाँट ने तुम्हारी आज़ादी छीन ली है , स्व-भाषा छीन ली और तुम्हे गुलाम बना लिया | जानते हो आज तुम्हारी प्रजाति जंगलो से ज़्यादा महलों में क्यों है ? क्योंकि तुमने इंसानो की बोली नक़ल कर अपने आज़ादी ख़त्म कर ली है, तुम खुद की बोली भूल गए हो | अब कुतरे पंख और पिंजरा तुम्हारा नसीब है | काश तुमने अपनी भाषा और स्वाभिमान का मान किया होता, तो आज तुम्हे भी अपने हिस्से की ज़मीन और आसमान नसीब होता |

कोयल का कटाक्ष सुन तोता कुछ देर तक अपनी बोली में टे.. टे .. करता रहा और फिर पिंजरे में जा बैठा|

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