सेक्स की अधकचरी मानसिकता समाज पर कर रही कुठाराघात
सेक्स की अधकचरी मानसिकता समाज पर कर रही कुठाराघात
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में केंद्र सरकार को पोर्न साईट्स पर पाबंदी लगाने को लेकर सवाल किया गया। तो दूसरी ओर केंद्र सरकार द्वारा देश में पोर्न साईट्स के प्रयोग को प्रतिबंधित करने की तैयारी कर ली गई। हालांकि देशभर में फैले सेक्स के जाल को इस तरह से प्रतिबंधित कर सरकार फिर से एक अधूरा कदम उठाने जा रही है। एक ओर जहां सरकारों द्वारा नियम बनाकर सहमति से सेक्स की उम्र 18 वर्ष कर दी गई है तो दूसरी ओर सरकार पोर्न साईट्स को बैन करने की फिराक में है। एक ओर परंपरागतरूप से चलने वाले सेक्स के कारोबार को चलने दिया जाता है तो दूसरी ओर सेक्स कर रहे जोड़ों को और देह व्यापार के अन्य मामलों में लोगों को पकड़ लिया जाता है। आखिर समाज में ये दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जाते हैं। 

दरअसल सेक्स जिसे भारतीय धर्म - दर्शन में चार पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के तौर पर शामिल किया जाता है। हमारे वेदों में इसका उल्लेख है महाकवि कालिदास का साहित्य प्रेम और सेक्स की बातों से भरा पड़ा है अजंता - एलोरा की गुफाओं में भित्ती चित्र सेक्स कहानियां दर्शाते हैं। प्राचीन भारत में गणिकाओं की परंपरा रही है वहीं नगर में निवास करने वाली सुंदर युवति को नगर वधू के तौर पर प्रतिष्ठा दी जाती थी।

ये नगर वधूऐं श्रेष्ठीजन और नगर के लोगों का दिल बहलाया करती थीं। वात्स्यायन का काम सूत्र आज भी प्रचलित है। अब तो पोर्न साईट्स जैसा ही पोर्न हिंदी सिनेमा में नज़र आने लगा है। यही नहीं कई ऐसी वेबसाईट्स हैं जो अपने प्रोडक्ट की ब्रांडिंग के लिए शाॅर्टस पहनने वाली और पोर्न संस्कृति को कामुक तरीके से बढ़ाने वाली माॅडल्स का प्रदर्शन करती हैं। फिर केवल पोर्न साईट्स को प्रतिबंधित करने की बात क्यों की जा रही है। दरअसल पोर्न साईट्स को प्रतिबंधित कर सरकार अपने उपर होने वाले हमलों से बचने का प्रयास कर रही है। जिसमें यह बात कही जाती रही है कि सरकार पाश्चात्य के बढ़ते चलने को रोकने का प्रयास नहीं कर रही है और अश्लील संस्कृति को बढ़ावा दे रही है।

ऐसे में कथिततौर पर हिंदूवादी सरकार को आड़े हाथों लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि भारतीय संस्कृति में भी काम को महत्व दिया गया है. हालांकि स्वामी विवेकानंद ने इसे केवल संतानोत्पत्ती का कारक बताया है मगर ऐसे समय में जब हम मिश्रित संस्कृति में जी रहे हों, हमारा खाना पीना जीवन शैली व्यवहार सब बदल रहा हो तो फिर पोर्न को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता और आधे अधूरे तरीके से पोर्न प्रतिबंधित कर हम फिर से वही दोहरी मानसिकता वाली बात करेंगे। ऐसे में यह हमारे साथ ही धोखा होगा। आज महानगरों में जीवन शैली बदली है और वहां सारी सेक्स वर्जनाऐं टूटती जा रही हैं। देश की दो प्रतिष्ठित मैग्जि़न्स ने ओआरजी और अन्य माध्यम से एक सर्वे इस 

संबंध में किया था जिसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि महानगरों में युवाओं, महिलाओं और अन्य लोगों द्वारा विवाह से पहले सेक्स आम बात हो गई है तो दूसरी ओर अपनी सेक्स की पूर्ति करने के लिए ये लोग अपने आस - पड़ोसियों, रिश्तेदारों, मित्रों आदि पर निर्भर रहते हैं ऐसे में पोर्न को प्रतिबंधित करना कहां तक सही है। यह तो किसी की निजता का हनन हो सकता है। यही नहीं छोटे शहरों और ग्रामीण अंचलों में भी दबे छुपे सेक्स किया जाता है। पोर्न परोसा जाता है। कुछ शहरों में तो आज भी कोठे संचालित होते हैं जहां बाकायदा मुजरे की तरह नृत्य किया जाता है और मेहमानों के लिए पोर्न परोसा जाता है। 

रियासतकाल में मिले इस पेशे की मान्यता के पत्र आज भी कोठों को संचालित करने वाली महिलाओं के पास मौजूद हैं। पोर्न और सेक्स को लेकर एक दिलचस्प तथ्य यह भी सामने आता है कि जिसे प्रतिबंधित करने की बात की जा रही है उसी के लिए बीते समय में सूखे से पीडि़त महाराष्ट्र सरकार कुंभ जैसे आयोजन में भी पानी से ज़्यादा कंडोम की चिंता में लगी रही। 

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